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मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

ऊर्जा

     कुटुंब अर्थात परिवार सामाजिक संरचना की लघुतम इकाई है तथा समाज की एक महत्वपूर्ण कोशिका है, जो पुष्ट होकर समाज को सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृढ़ता प्रदान करती है। सामाजिक जीवन में निरंतरता बनाए रखने में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जीवन में माधुर्य का संचार और सौंदर्य का निखार परिवार से ही आता है। अतः परिवार दीर्घ और सुखमय जीवन का आधार है। विद्वानों ने इसे विविध रूप से परिभाषित करने का प्रयास किया है। कुछ रक्त संबंध को परिवार मानते हैं तो कुछ माता-पिता, पत्नी और बच्चों को, पर स्वार्थमय संकुचित दृष्टिकोण के कारण आज केवल पत्नी और बच्चों को ही परिवार माना जाने लगा है। यह मनुष्य के गिरते हुए चिंतन का परिणाम है। वास्तव में परिवार पुष्ट तने और गहरी नींव वाले वृक्ष की उन बलिष्ठ शाखाओं के समान होता है, जो चतुर्दिक फैलकर स्वयं को और समाज को आत्मीयता की शीतल छाया प्रदान कर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

     परिवार के संबंध में भारत का चिंतन हमेशा से बहुत उदार और व्यापक रहा है। ऋषियों ने विश्व कल्याण की कामना से जो 'वसुधैव कुटुंबकम्'. का उद्घोष किया था, वह आज का वैश्विक चिंतन ही था। जो न केवल सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से वरन आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी समस्त भूमंडल के लिए लोक मंगलकारी था। स्वार्थमय चिंतन होने से परिवार की परिभाषाएं बदलती गईं। फलस्वरूप घर से लेकर बाहर तक संपूर्ण वैश्विक परिदृश्य में अशांति का अनुभव किया जा रहा है। सामाजिक एवं वैश्विक शांति के लिए संकीर्णतावादी सोच को छोड़कर परिवार को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। वसुधैव कुटुंबकम् के पवित्र भाव को आत्मसात करने से ही विश्वबंधुत्व का भाव प्रबल होगा। सर्वत्र सुख-शांति स्थापित होगी तथा स्वस्थ वैश्विक पर्यावरण को भी मजबूत आधार मिलेगा।

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