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मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

क्रोध

 

     मनुष्य में पांच भावनाएं प्रमुख रूप से पाई जाती हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या। इनमें क्रोध की भावना बहुत ही प्रबल होती है। क्रोध पूरे जीवन मनुष्य को घेर कर रखता है। न उम्र की मर्यादा करता है, न ज्ञान की। कब, कहां और किस पर उत्पन्न हो जाए, कहा नहीं जा सकता। क्रोध के जन्म लेते ही बुद्धि और विवेक का लोप हो जाता है। बुद्धि पर अंधकार छा जाता है। उचित-अनुचित का बोध नहीं रहता। क्रोध समाप्त होने पर व्यक्ति पश्चाताप करता है, परंतु परिस्थितियों को पूर्व की भांति नहीं कर पाता है। किसी भी कारागार में जाकर देख लीजिए। अधिकांश अपराधी अपने क्षणिक आवेश या क्रोध का परिणाम भुगत रहे हैं।

      वास्तव में किसी भी काम को बार-बार करने से वह हमारी आदत बन जाती है। अगर हम क्रोध भी बार-बार करते रहें तो यह स्थायी रूप से हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाएगा। फिर यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर हमें दुख की और धकेल देगा रामायण में एक प्रसंग है। जब भरत जी भगवान श्रीराम को मनाने के लिए वन में जा रहे होते हैं तो लक्ष्मण जी को मिथ्या भ्रम हो जाता है कि वह भगवान श्रीराम पर आक्रमण करने आ रहे हैं। वह देव पुरुष भरत जी के लिए लोभी और लालची जैसे अनुचित शब्दों का प्रयोग करते हैं, पर जब उन्हें सच्चाई पता लगती है तो उनके पास पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचता है। यह ग्लानि से भर जाते हैं, क्योंकि क्रोधी स्वभाव होने के कारण उन्होंने ऐसा किया। ऐसा नहीं है कि क्रोध हमेशा बुरा ही होता है, लेकिन इस पर नियंत्रण होना चाहिए और उचित-अनुचित का विचार होना चाहिए। महाभारत में भीष्म पितामह ने उचित समय पर क्रोध नहीं किया, जिसकी वजह से उन्हें बाणों की शैया मिली। वहीं जटायु ने उचित समय पर रावण के ऊपर क्रोध किया इसलिए वह भगवान श्रीराम की गोद के अधिकारी बने। अभ्यास के माध्यम से हम भी अपने क्रोध पर नियंत्रण कर सकते हैं।

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