जल संरक्षण
उत्तर भारत के गंगा के मैदानों में मानसून का पदार्पण हो चुका है।
मानसून असीमित जल राशि के साथ प्रकृति को नवजीवन देने आ रहा है। इसी के साथ
पौधरोपण का काम शुरू हो जाएगा। प्रदेश सरकार ने इस साल 30 करोड़ पौधे लगाने
की योजना बनाई है। सरकार मौजूदा और भावी पीढ़ियों के लिए इससे बेहतर कोई अन्य
योगदान नहीं दे सकती। इस एजेंडे में जल संचय, भूगर्भ जल रिचार्ज को भी शामिल कर
लिया जाए ,तो सोने पर सुहागा जैसी स्थिति पैदा की जा सकती है। वैसे यह दोनों कार्य
दशकों से सरकार के सालाना कैलेंडर में शामिल हैं। कुछ साल पहले तक यह सिर्फ
कागज़ों पर रस्मी तौर पर निपटाए जाते थे।
अब पौधरोपण को लेकर स्थिति बेहतर हुई है। बहरहाल जल संचय और भूगर्भ
जल रिचार्ज को लेकर भी अपेक्षित सजगता नहीं दिखती । राजधानी लखनऊ
समेत अधिकतर जिला मुख्यालयों के सरकारी कार्यालयों के भवनों में गूगल भूगर्भ जल
रिचार्ज प्रणाली स्थापित नहीं की जा सकी है। इसके लिए आर्थिक संसाधन और धन की
आवश्यकता होगी जिसे सामूहिक भागीदारी के द्वारा भी पूरा किया जा सकता है।
प्रदेश के अधिकतर अंचलों में भूगर्भ जल स्तर में तीव्र गिरावट देखते हुए सरकारी तंत्र
से लेकर आम आदमी तक कि बेपरवाही हैरतअंगेज़ है। ऐसे ही राज्य सरकार पहल
करके आम लोगों को जल संचय और भूगर्भ जल रिचार्ज के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
ग्रामीण इलाकों में तो लाखों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराए जाने की नीति
के कारण, तालाब
खोदवाकर जल संचय करने का अवसर मिल गया है। उत्तर प्रदेश के पठारी भागों में जहां
गर्मियों में पानी की अधिक समस्या हो जाती है वहां बड़े तालाब खोद वाकर मानसून के
जल को भंडारित करके कई कामों में लाया जा सकता है। वैसे तो गंगा के बेसिन में
भूगर्भ जल की कमी नहीं है लेकिन जहां जहां औद्योगिक बस्तियां बस रही हैं वे भूगर्भ जल
का अत्यधिक दोहन कर रही हैं जिससे भूगर्भ जल का स्तर भी कई जिलों में नीचे जा रहा है।
जिलाधिकारी चाहे तो इस स्थिति को यादगार में तब्दील कर सकते हैं। इसके लिए ग्राम प्रधानों
के साथ रणनीति बनाई जानी चाहिए। शहरी क्षेत्र में नागरिकों को उनकी छत पर भूगर्भ जल
रिचार्ज प्रणाली स्थापित करवाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इसमें स्थानीय निकाय
अहम भूमिका निभा सकते हैं। यद्यपि टेक्नोलॉजी और अन्य सुविधाओं से संबंधित
पक्ष की जिम्मेदारी भूगर्भ जल विभाग या जल निगम को सौंपी जानी चाहिए। लॉक डाउन
काल में पर्यावरण का पुनरुद्धार हुआ है। अब और पौधरोपण तथा जल संरक्षण के जरिए
इसे बल दिया जा सकता है। जल की मौजूदगी प्रकृत के जीवंत होने का संकेत है ।
इसीलिए प्रचुर मात्रा में जल संचय करके प्रकृति गोद को जीवन रस से लबालब रखा जा सकता है।
रेलवे में (ट्रैक) रेल पथ की मरम्मत के लिए ब्लॉक लेने का प्रचलन है। जिसमें कुछ घंटों के लिए
गाड़ियाँ रोक दी जाती हैं, और ट्रैक या विद्युत मार्ग की मरम्मत की जाती है।
अब ऐसा लगने लगा है, कि हमारी सरकारों को भी साल में एकाध महीने का
ब्लॉक अपनी प्रकृति को देना पड़ेगा ,ताकि प्रकृति स्वयं अपनी मरम्मत कर सके।
लोग अपने-अपने घरों में कैद रहे। सड़क पर गाड़ियां ना चलें, औद्योगिक संस्थान
अपने न्यूनतम स्तर पर परिचालित हो। व्यापारिक गतिविधियाँ भी बहुत न्यूनतम स्तर पर हो ।
ताकि जीवन यापन आसानी से हो सके। यह कहना बहुत आसान है, लेकिन
इसे लागू करना बहुत कठिन है। लेकिन हमें प्रकृति को बचाना है या प्रकृति का
का उद्धार करना है, तो साल में कम से कम 15 दिन से 1 महीने का मेंटेनेंस ब्लॉक
प्रकृति को देना ही पड़ेगा। यह हमारेनीतिनियंताओं को अपने
चिंतन में शामिल करना पड़ेगा।
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