इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

जीवन में वसंत



    जिस प्रकार बाहर के वातावरण में वसंत, ग्रीष्म एवं पतझड़ इत्यादि ऋतुओं का आगमन होता रहता है, वैसे ही हमारे भीतर भी इन ऋतुओं का अवतरण होता रहता है। भीतर में प्रकट होने वाली ये ऋतुएं वस्तुतः हमारी मानसिक दशाएं होती हैं। दरअसल वसंत एवं पतझड़ क्रमशः सुख-दुख तथा खुशी उदासी रूपी हमारी मानसिक दशाओं के ही प्रतीक हैं। यही कारण है कि मनुष्य को ये दोनों ही ऋतुएं अन्य 'ऋतुओं की तुलना में अधिक आकर्षित करती हैं। यह बहुत ही स्वाभाविक भी है।

    जब हम खुश होते हैं तो हमारे भीतर खुशियों वाले रसायन प्रवाहित होते हैं। ऐसे में हमारे भीतर दुख की भावना पैदा करने वाले रसायन प्रायः दमित अवस्था में चले जाते हैं। दूसरी ओर जब हम दुखी होते हैं तो हमारे भीतर दुख एवं उदासी वाला रसायन प्रभावशाली होता है, जिसके फलस्वरूप हम दुखी एवं उदास महसूस करने लगते हैं। आध्यात्मिक गुरु ओशो ने भी कहा है, 'जैसे बाहर में वसंत है, वैसे ही भीतर भी वसंत घटता है। और जैसे बाहर पतझड़ है, वैसे ही भीतर भी पतझड़ आता है। फर्क इतना ही है कि बाहर के वसंत और पतझड़ नियति से चलते हैं। वर्तुलाकार घूमते हैं। वहीं भीतर के वसंत और पतझड़ नियतिबद्ध नहीं हैं। आप स्वतंत्र हो, चाहे पतझड़ हो जाओ, चाहे वसंत हो जाओ। इतनी स्वतंत्रता चेतना की है।'

    तात्पर्य यह कि अपने भीतर प्रकट होने वाले मौसम के लिए सर्वथा हम ही जिम्मेदार होते हैं। यदि हम चाहें तो अपने भीतर वसंत को प्रकट कर सकते हैं और यदि चाहें तो पतझड़ को बुला सकते हैं। अर्थात हम अपने भीतर प्रकट होने वाली ऋतुओं को अपनी चेतना से नियंत्रित कर सकते हैं, क्योंकि हमारे भीतर प्रकट होने वाली ऋतुएं वस्तुतः हमारे ही सोच, चिंतन एवं कर्मों के कारण प्रकट होती हैं। • इसलिए यदि हम अच्छे एवं सकारात्मक विचारों को ही अपने मस्तिष्क में प्रधानता दें तो हमारे जीवन में प्रधानतः वसंत का मौसम बना रहेगा। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें