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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

लोभ और प्रीति

हम प्रायः लोभ और प्रेम को एक ही समझ लेते हैं, परंतु वास्तव में उनकी प्रकृति ही पूर्णतया अलग होती है। इनमें अंतर को समझें तो किसी प्रकार का सुख देने वाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति, जिसमें उस वस्तु के अभाव की भावना होते ही प्राप्ति, सान्निध्य या रक्षा की प्रबल इच्छा जगे तो उसे लोभ कहते हैं। वहीं किसी विशिष्ट वस्तु या व्यक्ति के प्रति जो मोह सात्विक रूप प्राप्त करता है, उसे प्रीति या प्रेम कहते है। एक और भी अंतर है कि जब हम अभीष्ट की किसी भी प्रकार से पूर्ति करना चाहें तो वह भी लोभ ही माना जाता है। प्रेम और प्रीति में धैर्य और दोनों पक्षों के स्तर पर स्वीकार्यता का भी उतना ही महत्व माना गया है। लोभ का मूल भौतिकता से जुड़ा होता है, किंतु प्रेम का आधार मुख्य रूप से आध्यात्मिक है।
 
लोभ जहां व्यक्ति और समाज के लिए नकारात्मक होता है वहीं प्रेम सकारात्मक माना जाता है। लोभवश जीवन के समस्त कार्य और प्रयास केवल स्वहित साधन की पूर्ति का माध्यम बनकर ही रह जाते हैं। लोभ मनुष्य के धैर्य को लील जाता है और चरित्र का अवमूल्यन करता है। लोभ वास्तव में ईमान का शत्रु है और व्यक्ति को नैतिक नहीं बने रहने देता। लोभ अमूमन मनुष्य को सभी बुरे कार्यों में प्रवृत्त रखता है। इसलिए लोभ को नियंत्रण में रखना प्रत्येक मनुष्य के सफल जीवन के लिए आवश्यक नीति मानी गई है। 

वहीं प्रेम से हम अपने जीवन को प्रसन्नचित और सफल बना सकते है। प्रेम एक सुमधुर सुखद अहसास है। प्रेम की की खुशबू को केवल महसूस किया जा सकता है। प्रेम की अनुभूति अवर्णनीय है। प्रेम मनुष्य की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है। इसके द्वारा हृदय में तरंगित भावनाओं को हम बखूबी व्यक्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सार्थक दिशा दे सकते है। ईश्वर से की जाने वाली प्रार्थना और मनुहार भी प्रेम भाव के साथ ही स्वीकार हो पाती है। वास्तव में प्रेम की शक्ति से किसी भी असंभव को संभव बनाया जा सकता है।



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