इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

संगति का महत्व

किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास और जीवन में संगति बहुत महत्व रखती है। कहा भी जाता है कि इंसान की जैसी संगति होती है, वैसी ही उसकी प्रकृति, प्रवृत्ति और नियति होती है। यानी मानवीय गुणों को संगति व्यापक तौर पर प्रभावित करती है। मनुष्य योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है। विशेषकर बाल्यावस्था और किशोरावस्था में व्यक्ति जिसके साथ रहता है, उसके जीवन पर उनका व्यापक असर दिखता है।

ऐसे में अभिभावकों को यह ख्याल रखना चाहिए कि उनकी संतान की संगत कैसी है। बच्चों का जीवन गीली मिट्टी की तरह होता है। उन्हें संगति रूपी जैसा सांचा मिलता है, वैसा ही उनके जीवन का निर्माण हो जाता है। अतएव माता-पिता को सत्संगति का, अच्छे विचारों का बीज बच्चे के मन में बचपन में ही बो देना चाहिए। जीवन में उन्नति की सीढ़ी सत्संगति है। अच्छी संगति ऐसी प्राणवायु है, जिसके संसर्ग मात्र से व्यक्ति सदाचरण का पालक बन जाता है। विनम्र, परोपकारी, ज्ञानवान एवं दयावान बन जाता है। सत्संगति में इतना ओज होता है कि वह बुराइयों का नाश करने की क्षमता रखता है। वस्तुतः सच्चरित्र व्यक्तियों का सान्निध्य ही सत्संगति है।

संगति से ही व्यक्ति को संस्कार प्राप्त होते हैं। स्पष्ट है कि यदि संगति सज्जन लोगों की होगी तो व्यक्ति के विचार शुभ होंगे और आत्मा स्वयं शुद्धि के मार्ग की ओर उन्मुख होगा। गलत आचरण वाले का साथ मिल गया तो मानव व्यसन, व्यभिचार की ओर चल पड़ेगा। इसलिए हमें सज्जनों की संगति करनी चाहिए और दुर्जनों की संगति से बचना चाहिए। हम सभी को ऐसे मित्र रखने चाहिए, जो हमारी उन्नति में सहायक बनें। बुरी संगति कितने भी प्रतिभावान व्यक्ति को बर्बाद कर देती है। इसीलिए हमें अपने मित्र और साथी सोच-समझकर चुनने चाहिए। कुसंग ने बड़े-बड़ों का जीवन व्यर्थ किया है। इसीलिए 'कुसंग के ज्वर' को अत्यंत घातक माना गया है, जो जीवन को निरर्थक बना देता है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें