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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

अर्थव्यवस्था को गति देता रेलवे

हालिया आम बजट में तमाम खास घोषणाएं हुई, जिनका व्यापक विश्लेषण भी हुआ है। फिर भी कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर उतनी चर्चा नहीं हुई, जितनी होनी चाहिए थी। जैसे मोदी सरकार ने अगले तीन वर्षों के दौरान देश में सौ गति-शक्ति कार्गो टर्मिनल विकसित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इसके माध्यम से एक स्टेशन - एक उत्पाद की संकल्पना को सिरे चढ़ाने की सरकारी योजना यदि आदर्श रूप में फलीभूत हुई तो यह बाजी पलटने वाली साबित हो सकती है। मोदी सरकार ने रेल ढुलाई क्षमताओं से जुड़ी संभावनाओं को बखूबी भुनाकर न केवल भारतीय रेलवे को मुनाफे की पटरी पर आगे बढ़ाया है, बल्कि इससे आपूर्ति की दुश्वारियां दूर होकर समग्र अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिला है। सरकार अब इस मुहिम को और रफ्तार देना चाहती है। यह किसी से छिपा नहीं कि कृषि उपज को देसी-विदेशी बाजारों तक पहुंचाने में व्यवस्थित नेटवर्क का अभाव भारतीय खेती की बदहाली की बड़ी वजह है। रही-सही कसर सड़क मार्ग की महंगी ढुलाई ने पूरी कर दी। वृद्धि की राह में इसी अवरोध को भांपते हुए सरकार ने कृषि उपजों की बिक्री के व्यवस्थित नेटवर्क बनाने के साथ-साथ दुलाई लागत कम करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। इसमें पहला काम है रेलवे से माल ढुलाई को बढ़ावा देना।

भारत में लाजिस्टिक लागत सकल घरेलू उत्पाद के 13 से 15 प्रतिशत के दायरे में है, जबकि इसका वैश्विक औसत आठ प्रतिशत है। एक किमी लंबाई की मालगाड़ी औसतन 72 ट्रकों जितना माल ढोती है। इससे न केवल ढुलाई लागत कम होगी, बल्कि व्यस्त राजमार्गों पर ट्रकों की भीड़ कम होने से माल समय से पहुंचेगा। सड़कें भी सुरक्षित बनेंगी। दुनिया भर में रेलवे से माल ढुलाई सड़क मार्ग की तुलना में सस्ती, पर्यावरण अनुकूल और शीघ्र डिलीवरी वाली होती है। वहीं भारत में रेल ढुलाई न केवल धीमी, बल्कि अनिश्चित भी है। यही कारण है कि आजादी के बाद से ही माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी घटती जा रही है। अधिकांश माल ढुलाई सड़क मार्ग से होने से उसकी लागत बढ़ती है, जिसका बोझ अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ता है। उत्पाद के दाम बढ़ने के चलते बिक्री प्रभावित होने से व्यापारियों को भी घाटा उठाना पड़ता है। बतौर उदाहरण सेब का उत्पादन देश के उत्तरी राज्यों में होता है, लेकिन पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों तक उस सेब को पहुंचाना महंगा पड़ता है। जबकि उन राज्यों में विदेशी सेब सस्ता पड़ता है। ऐसी स्थिति तमाम अन्य उत्पादों के साथ है।

मोदी सरकार में रेलवे की योजना माल ढुलाई में अपनी हिस्सेदारी 28 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 44 प्रतिशत करने की है। नेशनल रेल प्लान के अनुसार माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी 2026 तक 33 प्रतिशत, 2031 तक 39 प्रतिशत, 2041 तक 43 प्रतिशत और 2051 तक  44 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए रेलवे विभाग लीक से हटकर प्रयास कर रहा है। अब तक मालगाड़ियों को बीच रास्ते में रोककर यात्री गाड़ियां पास कराई जाती थी, लेकिन अब मालगाड़ियां समय से चल रही हैं। पहले मालगाड़ियों की औसत रफ्तार 22 किमी प्रति घंटा थी, वहीं अब 50 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से मालगाड़ियां दौड़ रही हैं।

सड़कों पर बढ़ती भीड़, महंगे डीजल और लेटलतीफी जैसे कारणों से दिग्गज कंपनियां रेलवे से ढुलाई को प्राथमिकता देने लगी हैं, जो रेलवे के लिए शुभ संकेत है। 2014 से 2020 तक मारुति सुजुकी ने 6,70,000 कारों की ढुलाई रेलवे के माध्यम से की। इससे न केवल 10 करोड़ लीटर डीजल की बचत हुई, बल्कि वायुमंडल में 3000 टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन भी नहीं हुआ। इसी तरह टाटा मोटर्स, ह्युंडई और होंडा जैसी कंपनियां भी अपनी गाड़ियां रेलवे के जरिये भेज रही हैं। 2014 में जहां 429 रैक कारों की ढुलाई में लगे थे, वहीं 2020 में यह संख्या बढ़कर 1,595 हो गई।

डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर (डीएफसी) बनने से मौजूदा रेलवे ट्रैकों पर दबाव कम होगा और व्यस्त मार्गों में माल ढुलाई में तेजी आएगी। मेक इन इंडिया पहल के तहत अब शक्तिशाली लोको देश में ही बनने लगे हैं, जो 6000 टन की मालगाड़ी को 75 से 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से खींच सकते हैं। पूर्वी डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर के 351 किमी लंबे भाऊपुर-खुर्जा के बीच परिचालन शुरू होने से मालगाड़ियों की रफ्तार 25 किमी प्रति घंटे से बढ़कर 60 किमी प्रतिघंटा हो गई है। इससे अलीगढ़, खुर्जा, फिरोजाबाद और आगरा की कृषि उपज आसानी से देश के प्रमुख बाजारों तक पहुंच रही है। इतना ही नहीं यह सेक्शन 2022 से 2052 के बीच 42 लाख टन कार्बन उत्सर्जन घटाएगा।

अब पुरानी रेल लाइनों की जगह ऊर्जा दक्ष कारिडोर ले रहे हैं। इससे पेट्रोलियम पदार्थों की खपत कम होगी और कार्बन उत्सर्जन भी घटेगा। डीएफसी पर कम लागत में और जल्दी ढुलाई के लिए रेलवे अनाकोंडा, सुपर अनाकोंडा, शेषनाग और वासुकी जैसी लंबी मालगाड़ियों का परीक्षण कर रहा है। इनमें डिस्ट्रिब्यूटेड पावर कंट्रोल सिस्टम यानी डीपीसीएस जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग गया है। इसी तरह पश्चिम रेलवे ने विद्युतीकृत क्षेत्र में ओवर हेड इक्विपमेंट क्षेत्र में पहली बार डबल स्टैक कंटेनर ट्रेन सफलतापूर्वक चलाकर विश्व में नया कीर्तिमान बनाया। डेढ़ किमी लंबी दुनिया की पहली डबल स्टैक इलेक्ट्रिक कंटनेर ट्रेन सड़कों पर 270 ट्रकों के दबाव को कम करती है। साथ ही ढुलाई लागत कम होने से भारतीय उत्पाद देसी-विदेशी बाजार की प्रतिस्पर्धा में टिकेंगे, जिससे व्यापार बढ़ेगा। फिर पेट्रोलियम आयात कम होने से दुर्लभ विदेशी मुद्रा भी बचेगी और पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।



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