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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

विनम्रता की शक्ति


विनम्रता की शक्ति

मनुष्य में विनम्रता का भाव उसे हमेशा श्रेष्ठ बनाता है। संस्कृत में श्लोक है कि 'विद्या ददाति विनयम्" । ज्ञानवान होने का मतलब ही है कि अनर्गल और नकारात्मक आचरण से दूरी बनाना। पढ़ा-लिखा है व्यक्ति यदि अनर्गल आचरण कर रहा है तब इसका अर्थ है कि उसने पुस्तकें जरूर पढ़ लीं, लेकिन वैशिष्ट्य बनाने वाली विद्या अभी उसके पास नहीं आई है, क्योंकि जिसने विनम्रता की शक्ति पहचान ली, उसे नकारात्मक कार्य करना बोझिल सा लगने लगेगा। रामचरितमानस में प्रसंग आता है कि जब माता सीता की खोज के लिए श्रीराम की सेना को चतुर्दिक भेजने की बारी आई तब ज्ञानियों में अग्रगण्य तथा मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के विशेष कृपापात्र हनुमान जी चुपचाप खड़े थे । यहाँ हनुमान जी का चुपचाप खड़े रहना विनम्रता का भाव परिलक्षित करता है । विनम्र व्यक्ति कायर नहीं होता। वह यत्र-तत्र अपना दंभ नहीं प्रकट करता, बल्कि विनम्रता के भाव को संजोकर रखता है और जब कोई विपरीत परिस्थिति आती है तब संजोकर रखी गई संचित शक्ति के बल पर जटिल और विपरीत हालात का मुकाबला करता है तथा उसे सफलता भी मिलती है।


हनुमान जी पवन पुत्र हैं। पवन यानी वायु । वायु में सर्वाधिक उपयोगी प्राणवायु होती है। हनुमान जी प्रकारांतर से खुद को प्राणवायु का प्रतिनिधि बताते हुए यह संदेश देते हैं कि मनुष्य भले नकारात्मकता में क्यों न जीवन जीता हो, यदि प्रातःकाल योग प्राणायाम करके अधिक से अधिक प्राणवायु हृदय में संचित कर ले, तब काम, क्रोध, मद और लोभ जैसे विकार से वह मुक्त हो जाएगा। यही वे विकार हैं, जो किसी व्यक्ति को रावण बनाते हैं। प्राणायाम के जरिये जब कोई साधक शरीर में अधिकाधिक प्राणवायु संचित कर लेता है तब उसके अंदर कै विजातीय पदार्थ जलकर नष्ट हो जाते हैं। लंका जलाने के पीछे हनुमान जी का यह संदेश भी निहित है।

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