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शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

धन का अभिनन्दन


धन का अभिनंदन

धनतेरस के साथ ही दीपावली उत्सव का आरंभ हो जाता है। यह पर्व हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके साथ संबद्ध अर्थ हमारी प्रसन्नता और सुख को पोषित करता है। धर्माचरण के समानांतर ही धनाचरण की सीढ़ी आती है, जिसके अभाव में ऊपर चढ़ना असंभव है अर्थ द्वारा धर्म और मोक्ष का मार्ग सहज होता है। अर्थ को मात्र वासनाओं तक सीमित करना उचित नहीं । यह साधना का भी आधार है। उद्देश्य और लक्ष्य पृथक हैं। अर्थ का महत्व ठीक से समझना चाहिए। अर्थोपार्जन धर्म के संरक्षण के लिए हो। दान, परोपकार और सहायता जैसे सद्कर्म धन के अभाव में नहीं हो पाते।

आर्थिक समृद्धि की कामना के साथ हर आस्थावान व्यक्ति धनतेरस पर धातु की एक नई वस्तु लाकर प्रतीकात्मक रूप से लक्ष्मी का वंदन अभिनंदन करता है। निर्धन और धनवान दोनों के लिए इस पर्व का महत्व बराबर है। सभी के लिए खुशी और उल्लास समान है। निर्धन अपने प्रतीकों पर अधिक निर्भर हो सकता है। प्रतीक ही उसकी निर्धनता को ढक लेते हैं। महालक्ष्मी भी भावना की भूखी हैं, न कि अपार आडंबर की आकांक्षी । निर्धन के लिए धनतेरस लक्ष्मी के स्वागत का अवसर है। माता लक्ष्मी महल में नहीं, अपितु नारायण को हृदय में बसाने वाले की झोपड़ी में पदार्पण करती हैं। धनतेरस का मर्म निर्धन एवं धनवान को समझने का मार्ग है। दोनों के मध्य शून्य को भरने का यह अवसर अत्यंत आत्मिक संदेश देता है।

धनतेरस में धन के वितरण का धार्मिक महत्व है। धन पर किसी का सर्वाधिकार अस्वीकार्य है। धन का पथ धर्म से चलना चाहिए। रावण ने अपने भाई कुबेर से सोने की लंका को छीन लिया था। इस अधर्म ने लंका को राख में बदल दिया। निर्धन और धनवान समाज के समान अंग हैं। धनवान से निर्धन को अपनाने का आग्रह है । धनवान वही, जो निर्धन को सराहे। अर्थात, निर्धन को सहारा देना और समर्थन देना-यही रामराज्य का आधार है.  

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