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सोमवार, 8 नवंबर 2021

राष्ट्रीय अखंडता

     राष्ट्रीय अखंडता का भाव भारतीय संस्कृति के मूल में रहा है। इसके लिए हमारे पूर्वजों ने अपना पूरा जीवन खपाया है। उन्होंने इसे बनाए रखने के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग तक किया। राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता भारत की शक्ति है। यही शक्ति हमें अद्वितीय एवं अजय बनाती है। वृहद राष्ट्र भारत अपनी राष्ट्रीय अखंडता के बल पर ही विश्व का सिरमौर बनने की दिशा में अग्रसर है। राष्ट्रीय अखंडता का भाव सनातन भाव है। हमारी संस्कृति ने भारत को केवल एक भौगोलिक इकाई भर नहीं माना है। उसमें इसे 'मां' कहा है। एक मां के नाते इसका सम्मान, सत्कार,पूजन व रक्षण किया है। हमारे पूर्वजों ने मातृत्व भाग से ही स्वीकार किया है। साथ ही वे इसकी रक्षा के लिए संकल्पित रहते हैं। राष्ट्रीय एकता ही हमारी उन्नति का कारक है। जब राष्ट्र पूरब से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र में बंधा हुआ है, तभी हम देश को आगे ले जा सकते हैं। राष्ट्रीय अखंडता हमारी निर्भरता का कारण भी है। हम अपनी राष्ट्रीय अखंडता के बल पर ही शत्रुओं के सम्मुख भी अडिग हैं। बांधव भाव से ही राष्ट्र को अखंडता व एकता के सूत्र में पिरोया जा सकता है। इसी बांधव एवं सहोदर भाव को जागृत करने की आवश्यकता है।

    स्वतंत्रता उपरांत के कालखंड में जब हमारे राष्ट्रीय एकता व अखंडता पर प्रश्नचिन्ह लगे हुए थे तब इसकी रक्षा के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल ने है भूमिका का निर्वहन किया। उन्होंने 'एक भारत- श्रेष्ठ भारत'  की महान कल्पना को साकार करने के लिए अपनी पूरी सामर्थ के साथ कार्य किया। उन्होंने मोतियों जैसे विभिन्न के आंसू तो एक माला में पिरो कर राष्ट्र बनाया था। वह कहा करते थे, 'एकता के बिना जनशक्ति, शक्ति नहीं है। जब तक कि उसे उचित प्रकार से सामान्य से मिलाकर एकजुट न किया जाए।' उन्होंने सदैव एकजुटता पर बल दिया। आज हमें इसी एकजुटता के भाव के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है।


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