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सोमवार, 16 दिसंबर 2019

विचारों का प्रभाव

विचारों का प्रभाव
 आदर्श विचार मनुष्य के जीवन की खराब दशा को सही दिशा देने का कार्य करते हैं. 
मनुष्य अपने जीवन में, विचारों के बंधन से मुक्त नहीं रह सकता. वह किसी ना किसी
विचार के प्रति आकर्षित तो होता ही है.  अब यह इस बात पर निर्भर करता है,
कि उसका आकर्षण सुविचार के प्रति है या कुविचारों के प्रति. सुविचार को व्यवहार
में स्थान देने से   ना सिर्फ व्यक्तित्व निखरता है ,बल्कि मनुष्य उन विचारों के आधार
पर उत्थान के मार्ग पर आगे बढ़ता है. कुविचारों को अपने जीवन में आत्मसात करने
वाले लोग पतन मार्ग के पथिक बन कर रह जाते हैं.  इसीलिए जीवन में विचारों की
भूमिका को तय करना बेहद जरूरी है.

आमतौर पर सूक्तियां बहुत आकर्षित करती हैं. हालांकि वे कथन सिर्फ उन्हीं का
आकर्षण बन पाते हैं जो उनके अर्थ तक पहुंच पाते हैं .  वह केवल अमृत वचन मात्र
नहीं होते बल्कि जीवन का सार होते हैं. उन कथनों को अनुभव की भांति
आत्मसात करने के लिए , एक दृष्ट की आवश्यकता होती है. यदि हम वह  दृष्टि
उपस्थित नहीं कर सकते तो हम उस विचार के मूल तक पहुंचने में सक्षम नहीं होंगे.


 यह सत्य है कि प्रत्येक मनुष्य की बौद्धिक क्षमता होती है , वह अपनी क्षमता के
आधार पर ही विचारों को स्वीकार या अस्वीकार करता है.  बुद्धिमान लोग सदैव
उत्तम विचारों से भरे होते हैं . और मूर्ख व्यक्ति वैचारिक रूप से दरिद्र होते हैं.
लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करते.  जीवन में सफलता और असफलता का निर्धारण
कर्म से होता है. किंतु कर्म में विचारों की बड़ी भूमिका रहती है. विचार ही सही
और गलत कर्मा का भेद कर पाते हैं. यदि सफलता गलत मार्ग पर चलने से प्राप्त
हो रही हो, तब मनुष्य क्या उस मार्ग का अनुसरण करेगा ?  इस प्रश्न का उत्तर
उसकी वैचारिक स्थिति पर निर्भर करता है .आधुनिक जीवनशैली में प्रवेश के
चलते अध्यात्म और आदर्श का स्थान व्यवहारिकता ने ले लिया है. ज्यादा व्यावहारिक
बनने की लालसा में सही और गलत के भी सोचने की क्षमता को समाप्त करने में कोई
कसर नहीं छोड़ी है  . ऐसे मैं विचारों के अनुयायियों के लिए कर्म में सही सही या गलत
महत्वपूर्ण नहीं होता. वे तो सिर्फ परिणाम के अभिलाषी होते हैं .परिणाम की लालसा के
चलते वे सही अथवा गलत में भेद ही नहीं कर पाते .

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