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गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

दुखानुभूति एक चुनौती

दुखानुभूति एक चुनौती 

ईश्वर ने जीवन   की , भिन्न-भिन्न रंगों से अभूतपूर्व रचना की है. मनुष्य कितना
भी चाहे कि उसके हिस्से में केवल आनंद ही आनंद रहे, लेकिन ऐसा संभव
नहीं है .जहां सुख की लालसा हो वहां कष्ट झेलने की क्षमता भी होनी चाहिए.
पीड़ा एक सच्चाई है. जहां सुख का सदैव स्वागत होना सर्वथा निश्चित है, वही
दुख और पीड़ा के आने पर अपने भाग्य को धिक्कारना  या दूसरों को उसके
लिए उत्तरदाई ठहराना, कहां तक तर्कसंगत है. 

  दुखानुभूति  को कम-से-कम आत्मसात किया जा सके, यह उसे चुनौती स्वरूप
लेने में ही निहित है. सत्य तो यह है कि टेढ़े- मेढ़े रास्ते पर चलने से ही जीवन के
कठिनतम  पाठ कंठस्थ हो पाते हैं. जो जीवन यापन में अत्यंत उपयोगी सिद्ध
हुआ करते हैं. जिसने इस संघर्ष को चुनौती के रूप में स्वीकारा हो ,उसे झेले
गए कष्टों की पीड़ा कम होगी.
दुखानुभूति तो अपनी मनास्थिति पर निर्भर है. वह  भौतिक ना होकर निराकार
होते हुए भी प्रचंड रूप ले सकती है . यह भ्रांति की समस्त दुख बाहरी  परिस्थितियों
की देन है ,और उसका निराकरण चारों ओर के प्रभा मंडल को बदलने से ही हो
सकता है ,उपयुक्त नहीं है. यदि ऐसा होता तो समस्त सुख सुविधाओं से लैस
व्यक्ति संसार में सबसे सुखी होता.

 हमने तो गरीब की झोपड़ी मैं किलकारीयों को सुना है. छोटे से बच्चे को
सस्ते से खिलौना पाते ही आनंद  विभोर होते, और दूसरी और वैभव संपन्न
व्यक्ति को बिलखते देखा है. हम अपने कष्टों के प्रति जितने संवेदनशील होंगे 
दुख की अनुभूति का आभास उतने ही अनुपात में होना निश्चित है. जीवन है
तो सुख दुख आते जाते रहेंगे. जैसे हम आनंद को स्वीकारते हैं ,उसी तरह पीड़ा
को भी  अदम्य साहस से भोगना आना होगा, वरना उससे पार पाना बेहद
कष्टकारी होगा. यह सही है कि जो व्यक्ति दुख से जूझ रहा है, उसकी पीड़ा
तो वही समझ सकता है. उसका विश्लेषण दूसरा नहीं कर सकता, पर दुख
के प्रति सकारात्मक सोच व्यक्ति को जीवन के सहज मार्ग पर चलने में सहयोगी
अवश्य हो सकती है. हमें हर हाल में  संयम बरतना चाहिए.दुखानुभूति को चुनौती
मान आगे बढ़ने से सफलता प्राप्त फिर एक नई चुनौती को स्वीकार ने के लिए
तैयार कर देती है.

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