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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

अनित्यता का बोध || बिजय कुमार ||

 अनित्यता का बोध

ऐश्वर्य, सत्ता, प्रभुत्व, रूप और स्वास्थ्य कभी किसी के भी जीवन में स्थिर नहीं रहते। समय के साथ सभी का क्षीण होना तय है। यहां जो भी है सब अनित्य है और प्रत्येक वस्तु कुछ और होने की प्रक्रिया में है। नश्वरता का यह बोध हमें अपने जीवन में भी दिखाई देता है। हम सब परिवर्तन के दौर में हैं। जो हम आज से कुछ साल पहले थे वह आज नहीं हैं, हमारे विचार भी समय के साथ बदलते रहते हैं। यह बदलाव प्रकृति में भी प्रत्यक्ष दिखता है। कली का फूल बनना और फिर फूल का, मुरझाना सब कुछ जीवन के सत्य की ही तरह है।


इसी कारण हमें जीवन में प्राप्त उपलब्धियों का उत्सव अवश्य मनाना चाहिए, लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जो कुछ मिला है वह सदा नहीं रहेगा। समय का पहिया हर समय घूमता ही रहता है। पद, पैसा और प्रतिष्ठा यदि एक साथ मिल भी जाएं तो उनके ऊपर अधिक नहीं इतराना चाहिए, क्योंकि जब यह सब खो जाएंगे तब बहुत आकुलता होगी और उस समय मन दुखी ही होगा। रूप, बल, स्वास्थ्य और युवावस्था का गर्व भी कालचक्र के साथ बीतता जाता है। सब कालातीत हो जाएंगे और अनचाहे अतिथियों की तरह बीमारियों के साथ वृद्धावस्था आएगी ही।


जीवन का मूलमंत्र ही है सदैव साम्यता रखना और किसी भी परिस्थिति में विचलित न होना। ध्यान रहे कि किसी के साथ ज्यादा आसक्ति न हो जाए। जैसे छोटे बच्चे बड़ी मेहनत और लगन के साथ खेल-खेल में ताश का घर बनाते हैं और एक हल्की सी छुअन या हवा का झोंका उस बने-बनाए महल को एक पल में गिरा जाता है, वैसे ही इस जीवन महल को भी एक न एक दिन धराशायी होना ही होता है। यह अनित्यता का बोध बार-बार दोहराने से हमारी सुप्त चेतना जाग सकती है। जो जागृत होकर जीते हैं उनके जीवन में न कोई तनाव रहता है न ही उन्हें कोई अभाव खलता है। यही समझ एक सुखद एवं सार्थक जीवन का आधार है। 

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