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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

जीवन पर्व॥ बिजय कुमार।

 

जीवन पर्व


एक दिन को आप जीवन का अंतिम दिन मान कर देखिए । जो कुछ करना है, आज ही अंतिम अवसर है - ऐसा समझ कर जो कुछ करेंगे, वह अद्भुत होगा । जीवन का श्रेष्ठतम आज कर लीजिए, यही दिवस की व्याख्या है, लेकिन मानव का दुर्भाग्य है कि संत वचन को झुठला कर केवल कल की योजना बनाता है। यद्यपि कल की योजना बनाना आज के सबसे उपयोगी दिवस में सम्मिलित किया जा सकता है, परंतु यह अंतिम कार्य होना चाहिए। दिन की समाप्ति का अंतिम विचार कह सकते हैं। उसके ठीक पहले कोई विचार नहीं, केवल कर्म होना चाहिए। दिनभर में सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य संपादित किया जाना श्रेष्ठ जीवन पद्धति है ।

यह आज का जो दिन है यही जीवन है। शेष न . कोई जीवन है, न उसका महत्व। लोग प्रायः भूत और भविष्य के भंवर में गोते लगाते हुए वर्तमान को भी गंवाते फिरते हैं। लोग आशंकाओं और संदेहों के बीज बोने में पूरा दिन व्यर्थ कर देते हैं। लोग चिंता और अनुमानों के सहारे संपूर्ण जीवन ब्यतीत करना चाहते हैं, लेकिन यह वृत्ति अत्यंत भ्रामक है। इससे हर एक प्राणी को उबरना चाहिए। अन्यथा आज की दौड़ में पिछड़ जाएंगे। आज ही काज है, बाकी अकाज है। आज के दिन को जिसने जी लिया, वही भाग्यशाली है। जिस मानव ने आज का दिन नहीं जिया, वह दरिद्र है। वर्तमान ही जीवन अमृत है, शेष मृत है।


जीवन दिवस को गले लगाइए, स्वागत कीजिए । आज को संपूर्ण जीने का मनोबल होना ही सर्वोत्तम उपलब्धि है। सकारात्मक सोच, सार्थक विचार और सजग बुद्धि से वर्तमान में स्थिर होना लौकिक सुख से अलौकिक आनंद की ओर ले जाता है। पल-पल जीवन को जीने का उत्साह, उमंग एवं उन्माद को जिजीविषा से जोड़ना चाहिए। यही सब लोगों के जीवन का लक्ष्य बन सकता है। अन्यथा घुट-घुट कर जीना तो मरने के समान है। इसलिए मृत्यु के भय से दूर हर दिन जीवन पर्व मनाइए ।

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