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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

एकांत का सुख || बिजय कुमार ||

एकांत का सुख

मनुष्य की मूल प्रवृत्ति नितांत एकाकी स्वरूप की है। वह एक स्वतंत्र शरीर और स्वतंत्र मन के साथ अकेला जन्म लेता है और अंत ही परलोक को प्रस्थान करता है। जुड़वां संतानों का स्वभाव, आचरण और अंतकाल भी भिन्न-


भिन्न होता है। किसी की आंखों की पुतलियों 'और अंगुलियों की छाप अन्य व्यक्ति से मेल नहीं खाती। मनुष्य प्रकृति की उत्कृष्ट एवं अदभुत रचना है। दूसरों के सान्निध्य में उसे अपनी मूल सहजता और सदाचरण को क्षीण नहीं होने देना चाहिए। निःसंदेह, मेल-जोल के बिना गुजारा नहीं है। अपनी संवेदनाएं, सुख-दुख और पीड़ा मनुष्य कहीं तो साझा करेगा, किंतु उत्कृष्ट मार्ग के कुछ आयाम एकल ही संपन्न करने होंगे। प्रेम और मित्रता के तानेबाने से निर्मित भ्रमजाल में जीते हुए हम प्रायः मनुष्य की एकाकी प्रवृत्ति की अनदेखी करते हैं।


स्वयं को प्रभु या उच्चतर शक्ति पुंज का- अभिन्न अंग मानने वाला अनेक प्रतिरोधी शक्तियों से निपटने में सक्षम हो जाता है। औचित्य और सदाचार की अनुपालना में लोक मान्यता न मिलने पर वह विचलित नहीं होता, अपितु अपनी राह पर अविरल प्रशस्त होता रहता है। वह जानता है कि - प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में ब्रह्मांड है, अतः सांसारिक मर्यादा की अपेक्षा अंतरात्मा की सुनना श्रेयस्कर है। एकांत का अर्थ समाज से विरक्तियां या सांसारिक गतिविधियों से दूरी बनाना नहीं है। यह न तो संभव है न ही वांछनीय। मेल-जोल में रहने वाला एकांतप्रिय व्यक्ति मौन की आवाज भी सुन सकता है। एकांत प्रिय व्यक्ति सहज, स्वच्छंद और साहसी प्रवृत्ति का होगा। उसका मनोबल भी उच्चस्तरीय होगा। भीड़ के अनुगामी में अकेले टिकने का माद्दा नहीं होता। दिशाहीन भीड़ के अनुगामी को नहीं पता होता कि लोग किधर जा रहे हैं। एकाकी राही जानता है कि उसे भीड़ के साथ नहीं, अपितु अपनी निर्दिष्ट राह पर चलते रहना है। स्वयं से साक्षात्कार करने के लिए एकांत से बेहतर साधन नहीं है ।


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