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सोमवार, 12 सितंबर 2022

आदर्श शिक्षक


आदर्श शिक्षक

सम और विषम परिस्थितियों का सामना मनुष्य ही नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम और योगेश्वर श्रीकृष्ण तक को मनुष्य रूप में जन्म लेने पर करना पड़ा था। अयोध्या के महल में सम परिस्थितियां थीं, मगर कैकेयी के चलते चौदह वर्ष का वनवास विषम परिस्थितियों में बदल गया, फिर भी श्रीराम ने मर्यादा का भाव बनाए रखा। बाल्यकाल में विद्याध्ययन के दौरान गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को बहुमुखी ज्ञान, लोकाचार और अंतर्मन में व्याप्त शक्तियों की जानकारियां दी थीं। साथ ही उन्हें आदर्श जीवन के मानदंडों से भी अवगत कराया था। भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान जगह-जगह ज्ञान का ही प्रसार किया। बाली और रावण का वध किया, फिर भी उन्हें सद्ज्ञान ही दिया। श्रीराम का लक्ष्मण, सीता, हनुमान, विभीषण आदि को दिए गए ज्ञान को 'विद्या की पाठशाला' भी मानना चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान सम-विषम द्वापरयुग में परिस्थितियों में अर्जुन के मन को सशक्त बनाने का भरपूर ज्ञान दिया, जिसके चलते महासंग्राम के मैदान से अर्जुन का पलायन रुक गया।

 यही स्थिति सभी की होती है। जन्म के बाद बच्चे को विद्याध्ययन के साथ अंतर्जगत की शक्तियों का पता बताने वाला शिक्षक होता है। शिक्षा 'शिक्ष' धातु और 'अ' प्रत्यय से बना है, जिसका अर्थ सीखना और सिखाना होता है। अर्जुन सामान्य परिवार के नहीं थे। विद्याध्ययन की दृष्टि से योग्य भी थे, किंतु विषम परिस्थितियां आने पर विचलितहोने लगे। इसी विचलन को रोकने का काम मनुष्य के जीवन में योग्य शिक्षक करता है। जीवन में भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति और उसके निमित्त होने वाली परीक्षा उत्तीर्ण कराने की दृष्टि से शिक्षा देने वाला शिक्षक है, लेकिन वह अधूरा शिक्षक है। आदर्श शिक्षक का दायित्व है कि पल भर के लिए भी शिष्य सान्निध्य में आए तो खुद के अपने सत् आचरण का प्रत्यारोपण शिष्य में कर दे

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