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बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

अमूल्य जीवन।

                                                                 अमूल्य जीवन

    कलयुग में मनुष्य बहुत जल्दी हताश और निराश हो जाता ह।  इस भौतिकतावादी युग में मानव हर वस्तु जल्द से जल्द प्राप्त कर लेना चाहता है।  इस चाहत के चलते उसे जब अभीष्ट की प्राप्ति नहीं हो पाती तो वह निराश हो जाता है। जब वह यह देखता है कि उसके सामने अन्य सफल हो गए और होते भी जा रहे हैं, पर ऐसी सफलता उसे नहीं मिल रही तो फिर वह इतना व्यथित हो जाता है कि अपने अमूल्य जीवन तक को ही नष्ट करने की ठान लेता है। 


      ऐसे लोगों को थोड़ा रुककर विचार करने की आवश्यकता है। उन्हें ऐसा विचार करना चाहिए कि यह संसार परिवर्तनशील है। यहां परिस्थितियां बनती और बिगड़ती रहती हैं।  समय एक समान नहीं रहता। कभी जीवन में अनुकूलता आती है तो कभी प्रतिकूलता।  यही संसार का नियम है। यह प्राप्त मानव जीवन प्रकृति  की अमूल्य देन है इसे हमने अपने पूर्व में किए गए कर्मों के प्रसाद के रूप में प्राप्त किया है।  यह मानव जीवन व्यर्थ में गवाने  के लिए नहीं है।  देवता भी मनुष्य शरीर प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं।  ऐसे दुर्लभ एवं उपयोगी मानव जीवन को हम इंद्रिय सुख की लालसा में नष्ट करते चले जाते हैं।  इस प्राप्त मानव शरीर का सदुपयोग परमात्मा की भक्ति करने में है। परमात्मा ही हमें सुख-शांति एवं भवसागर पार करने का मौका प्रदान कर सकते हैं। पूर्ण तत्वदर्शी संत परम सुखदाई परमात्मा से मिला करते हैं। तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर उन्हें अपना गुरु बनाकर, उनके बताए गए मार्ग पर चलने के बाद ही हमें सच्ची भक्ति प्राप्त हो सकती है।  

 हमें आज ही प्राप्त इस अमूल्य मानव जीवन को नष्ट न करने के लिए प्रण करना चाहिए।  देश और समाज के परिदृश्य को देखें तो आज मानव जीवन पर वैसे ही अदृश्य संकट छाया हुआ है। इसीलिए मानव को अनंत ब्रह्मांड के रचयिता की शरण ग्रहण कर अपने आत्मबल को बनाए रखते हुए, स्वयं के जीवन को सुरक्षित रखना चाहिए।  


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