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शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

अंधकार से संघर्ष

 अंधकार से संघर्ष


सृष्टि में अंधकार और प्रकाश दोनों है। विषमता, कठिन परिस्थितियां अँधेरी रात के समान है तो कर्मठता, सदाचार, विवेकयुक्त ज्ञान, स्नेह, प्रेम, सद्भाव आदि ऐसे दीए हैं कि इनमें से कोई एक भी दीया जलाते ही आसपास रोशनी हो जाती है। यह दो सकते हैं की रात-दिन सृष्टि का एक ऐसा चक्र है जो निरंतर चलता रहता है। रात के सब नुक़सान ही हैं,ऐसा नहीं। उसी प्रकार जीवन में कठिनाइयों का अंधेरा यदि आ ही जाए तो उसका संयत प्रभाव से सामना करने से साहस का भाव पैदा होता है। कठिन परिस्थितियों में बिना विचलित हुए उसमें से निकलने की योजना बनानी चाहिए। प्रायः महापुरुषों ने ऐसा ही काम किया है। जो व्यक्ति नकारात्मकता से सकारात्मकता खोजना चाहेगा तो उसमें से ही आगे बढ़ने के रास्ते निकल आएंगे। 


त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के भक्त हनुमानजी छल-छद्म रूपी अंधकारग्रस्त लंका में माता सीता की खोज के लिए कूद पड़ते हैं। लंका में चारों तरफ़ विपरीत हालात थे, लेकिन वे विचलित नहीं हुए। इसी दृढ़ता के बीच उन्हें सकारात्मकता मिल गई। विभीषण से मुलाक़ात हो गई। उस काल के सर्वाधिक नकारात्मक महल लंका के ध्वस्तीकरण का यह कार्य निर्णयात्मक क़दम साबित हुआ। हमारे ऋषियों ने नवरात्र, दीपावली की रात्रि को जागरण के लिए इसी लिए निर्धारित किया कि हमें जीवन में कठिनाइयों, विषमताओं के अंधेरे में सोना नहीं चाहिए, बल्कि इस समय अवसरों को जागृत करने के उपाय ढूंढने चाहिए। यह सद्गुणों से ही संभव है।

भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का जो प्रकाश युगों बाद भी हमें मिल रहा है, वह उनके अंधेरे से लड़ने के कारण ही मिल रहा है। जब भी किसी व्यक्ति के मन में लोकहित के भाव जागृत होते हैं, तब वह समाज के प्रकाशस्वरूप हो जाता है। फिर वह सिर्फ़ अपने जीवन को ही नहीं, कई पीढ़ियों को आलोकित करता है। हमारे ऋषियों ने इसीलिए 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का महामंत्र दिया है।  


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