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गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

भय का महत्व

 भय का महत्व


    संसार में कोई भी वस्तु या भाव परिस्थिति के अनुरूप ही अच्छा या बुरा होता है ‌। प्रायः भय के भाव को एक नकारात्मक तत्वों के रूप में ही स्वीकार किया जाता है, परंतु यह तथ्य पूर्णरूपेण सत्य नहीं है। भय का नकारात्मक या सकारात्मक होना व्यक्ति विशेष या परिस्थिति के सापेक्ष होता है। जड़, मूढ़ और खल व्यक्ति के मन में भय सामाजिक नियंत्रण और व्यवहार नियंत्रण के लिए आवश्यक है। इसीलिए भगवान श्री राम द्वारा तीन दिनों तक समुद्र की प्रार्थना के बाद भी जब उसने अपनी जड़ता नहीं छोड़ी तो भगवान श्रीराम को बाण का संधान करना पड़ा और उन्होंने कहा कि बिना भय के प्रीति नहीं उपजती। यदि इसी तथ्य को दृष्टिगत रखा जाए तो अपराधी, दुष्ट या रूढ़िग्रस्त व्यक्ति को सही मार्ग पर लाने में भय का बहुत महत्व है। 


    वास्तव में भय वह भाव है जो हमारे अंतःकरण को नियंत्रित करता है। मनुष्य के नियंत्रण के दो साधन होते हैं, बाहृय और आंतरिक। बाहृय साधन में पुलिस या कानून का भय रहता है, जबकि आंतरिक साधनों में धर्म,लोक आदि का भय। ये दोनों ही साधन भय द्वारा सामाजिक नियमन स्थापित करते हैं। इस दृष्टि से भय की महत्ता स्पष्ट होती है । मन से भय का विशरण होते ही व्यक्ति के व्यवहार के उच्चछृंखल होने की संभावना बढ़ जाती है।


    तात्पर्य यह है कि हृदय से भय के मिट जाने पर सांसारिक लोक व्यवहार और लोक प्रेम के नष्ट हो जाने की संभावना रहती है। यदि भगवान श्री राम भय न दिखाते तो क्या आततायी रावण का अंत हो पाता और क्या धरती निशाचर विहीन हो पाती? यदि विद्यार्थी के अंदर परीक्षा में असफल होने का भय ना हो तो समाज में अपराधों की संख्या की गणना भी मुश्किल हो जाएगी। भविष्य के भय से संसार के साधारण जन लोक रीति और नीति का पालन करते हैं। अतः समाज में व्यवस्था बनाए रखने में भय भी महत्व रखता है।


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