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बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

योग और स्वाध्याय

                                                             योग और स्वाध्याय

    महर्षि पतंजलि ने लिए पूर्ण योग की आठ  सीढ़ियाँ बनायी हैं इन्हें अष्टांग योग कहा जाता है।  इनके अनुसरण से मनुष्य जीवन को सार्थक बना लेता है।  इसकी पहली सीढ़ी है यम और दूसरी है नियम।  यम में साधक को सत्य ,अहिंसा ,ब्रह्मचर्य  ,अस्तेय और अपरिग्रह तथा नियम में शौच संतोष ,तप , स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अपनाना होता है। यम और नियम का उद्देश्य से मनुष्य की मानसिक स्थिति को अवगुणों से मुक्त कर उसे ईश्वर साधना के लिए तैयार करना है।  इस पूरे उपक्रम में स्वाध्याय का विशेष स्थान है। स्वाध्याय का तात्पर्य वास्तव में धर्मग्रंथों में वर्णित आध्यात्मिक ज्ञान के संदर्भ में स्वयं का अध्ययन करने से हैं। ऐसे ही प्रमुख ग्रंथों में से एक गीता में इसका मर्म समाया हुआ है। गीता के अनुसार प्रत्येक जीव में ईश्वरीय अंश विद्यमान् है। इसलिए मनुष्य को बाहरी संसार में ईश्वर को खोजने के बजाय अपने भीतर ही वह खोज करनी चाहिए। इसी प्रकार आध्यात्मिक ज्ञान का अलग अलग धर्म ग्रंथों में भी प्राप्त होता है। 

     स्वाध्याय में मनुष्य उपरोक्त ज्ञान के प्रकाश में स्वयं का अध्ययन करता है कि क्या वह उचित ज्ञान के अनुसार जीवन निर्वाह कर रहा है ?यदि वह अपने व्यवहार में कुछ भिन्नता पाता है तो उसे स्वाध्याय के द्वारा सुधारने का प्रयास करता है। इस प्रकार स्वाध्याय के द्वारा मनुष्य स्वयं मानवी दुर्गुणों से मुक्त होकर ईश्वर से जुड़ने के लिए तैयार होता है। इसके बाद ही वह योग द्वारा इस प्रक्रिया को पूरा करता है। स्वाध्याय का महत्व समझते हुए या परम आवश्यक है कि सादगी आध्यात्मिक ज्ञान में श्रद्धा हो ,क्योंकि श्रद्धा के द्वारा ही वह किसी तथ्य को स्वीकार करता है। और जब वह उसे समझ कर ग्रहण कर लेता है तब वह ज्ञान कहलाता है। इस प्रकार स्वाध्याय योग के लिए बहुत ही ज़रूरी है।  इसलिए प्रत्येक मनुष्य की योग में स्थित होने के लिए स्वाध्याय को अपने जीवन में ज़रूर अपनाना चाहिए। स्वाध्याय के द्वारा वह हर समय योगी है।  


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