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शुक्रवार, 31 मार्च 2023

समस्या का मूल।

 समस्या का मूल


आज हर व्यक्ति समस्याओं का रोना रो रहा है। उसने जीने के रास्ते बदल लिए हैं। जिन रास्तों पर वह बढ़ रहा है, वहां एकांकी दृष्टिकोण हावी है। हम देखते हैं तो सिर्फ बाहर और सोचते भी हैं तो सिर्फ औरों के विषय में। महावीर कहते हैं कि बाहर मत झांको। तुम जिसे देखना, पाना और जानना चाहते हो वह तुम्हारे भीतर हैं। उन्हें भीतर खोजो, क्योंकि बाहर ढूंढ़ने वाले हर मोड़ पर एक नई समस्या ढूंढ़ लेते हैं। हमें उन सभी रास्तों को छोड़ना होगा जहां शक्तियां बिखरती हैं, प्रयत्न दुर्बल होते हैं। हमें समस्या के मूल को पकड़ना होगा।


आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा है-मूल को पकड़ो, उसे नष्ट करो। सब समस्याएं सुलझ जाएंगी। जब समस्या की पकड़ ठीक होगी तो समाधान भी ठीक होगा। टालस्टाय के पास एक भिखारी आया। उसने भीख मांगी। टालस्टाय बोले-भीख मांगना उचित नहीं है। श्रम करो और रोटी कमाकर खाओ। भिखारी बोला-श्रम करने का साधन ही नहीं है मेरे पास। क्या करूं? टालस्टाय ने उसे उपकरण दिए। वह भीख मांगना छोड़कर श्रम करने लगा। यह है समस्या का मूल समाधान। टालस्टाय ने उस भिखारी को सहारा भी दिया और भीख मांगना भी छुड़ा दिया। यह है समस्या के प्रति सही दृष्टिकोण। इस प्रक्रिया से आध्यात्मिक समाधान के साथ-साथ, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का भी सही समाधान प्राप्त हो सकता है।


जब व्यक्ति अपने आपको नहीं देख पाता, तब समस्याएं पैदा होती चली जाती हैं। इनका कहीं अंत नहीं होता। गरीबी की समस्या हो या मकान और कपड़े की या अन्याय समस्याएं हों, वे सारी की सारी गौण समस्याएं हैं, मूल समस्या नहीं हैं। ये पत्तों की समस्याएं हैं, जड़ की नहीं हैं। पत्तों का क्या? पतझड़ आता है, सारे पत्ते झड़ जाते हैं। वसंत आता है और सारे पत्ते फिर आ जाते हैं, वृक्ष हरा-भरा हो जाता है। मूल समस्या यह है कि व्यक्ति अपने आपको नहीं देख पा रहा है।

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