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शुक्रवार, 10 मार्च 2023

चम्पारण की यात्रा

 चम्पारण की यात्रा



(चंपारण रंग एवं  लघु फिल्मोत्सव,1,2,3 मार्च 2023, गांधी आटोरियम, मोतिहारी)

    गांधी की कर्म भूमि मोतिहारी (विहार) सौभाग्य से मेरी जन्मभूमि भी रही है। मेरे पिताश्री ओम प्रकाश नारायण की कर्म भूमि भी रही है।कला और संस्कृति की भूमि चम्पारण ने साहित्य, रंगमंच,फिल्म , गायकी और न जाने कौन कौन से क्षेत्र में यानि कोई ऐसा क्षेत्र नहीं रहा है, जहां अपना परचम न लहराया हो। बाल्यकाल से मोतिहारी में बिताये गये क्षण , पिताश्री का सानिध्य और वहां की सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रभाव से मेरे मन में मोतिहारी के प्रति आस्था ही आस्था व्याप्त है।

                      आज भी, चाहे मैं डा.राजेन्द्र प्रसाद की जन्म स्थली के पास सीवान में रहूं या गोरक्षनाथ की धरती पर, अपने दोस्तों के माध्यम से अपने आप को मोतिहारी के आस-पास ही पाता हूं और बहाना ढ़ूंढ़ता रहता हूं कि मोतिहारी की धरती को नमन करुं

                        जैसे ही मोतिहारी में चम्पारण रंग और लघु फिल्मोत्सव की सूचना मुझे मिली। खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उस उत्साह रुपी खुशी में चार चांद लग गया जब रोशनाई फाउंडेशन, मोतिहारी के महासचिव श्री गुलरेज शहजाद एवं बिहार नाटक और संगीत अकादमी के वरीय सदस्य श्री प्रसाद रत्नेश्वर ने सूचित किया कि वरिष्ठ नाटककार श्री ओमप्रकाश नारायण को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से 03 मार्च को गांधी आटोरियम, मोतिहारी के रंगमंच पर सम्मानित किया जाएगा।

      चंपारण की धरती को पूरी दुनिया में सत्याग्रह की धरती के रूप में जाना जाता है। गांधीजी के चंपारण आगमन पर सत्याग्रह आंदोलन के समय भी इस धरती ने साहित्य, कला, संस्कृति के माध्यम से आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। आजादी की लड़ाई के दौरान भी नाटक, गीत -संगीत के माध्यम से यहां के लोगों ने अनूठे तरीके से योगदान दिया था ।  हिंदी फिल्म जगत में गोपाल सिंह नेपाली से लेकर मनोज बाजपेयी के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

            कभी मोतिहारी को उत्तर बिहार के सांस्कृतिक राजधानी होने का गौरव प्राप्त रहा है, लेकिन यह अतीत की बातें हो चुकी हैं।

          प्राचीन काल में चंपारण मिथिला राज्य का अंग था । भारत के प्राचीनतम  अरण्यों में एक चंपारण भी है, जो आज पूर्वी और पश्चिमी चंपारण के नाम से दो जिलों के रूप में जाना जाता है ।भारत की आर्ष संस्कृति अरण्यों में ही विकसित हुई थी  और वहीं विश्व कल्याण के निमित्त ऋषि यों ने गहन साधना की थी और यह प्रार्थना की थी-" तमसो मा ज्योतिर्गमय"। चंपारण की संस्कृति निर्विवाद रूप से प्रकाश की ओर उन्मुख होने की संस्कृति है ।साहित्य ,कला और संस्कृति के क्षेत्र में इसकी उपलब्धियां विशिष्ट रही है।

             सीवान से मैं,मेरे पुत्र संजीत प्रकाश एवं मंजीत प्रकाश अपने दादा श्री के साथ चल पड़े मोतिहारी की धरती को नमन करने। कलाकारों के अतिरिक्त पुराने परिचितों में डा. एम.के.ठाकुर, श्री देवेन्द्र कुमार सिंह,श्री रमेश सिंह, श्री राजकिशोर प्रसाद,प्रभाष त्रिपाठी,श्री उमाशंकर ठाकुर,श्रीआमी चन्द, प्रसाद रत्नेश्वर जैसे पारिवारिक जनों से वर्षों बाद मुलाकात आत्मीयता से परिपूर्ण रहा।

          03 मार्च को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम के बीच बाबु जी श्री ओमप्रकाश नारायण को "लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड" से नवाजा गया।साथ ही बहुत सारे नवोदित कलाकारों से मुलाकात हुई,परिचय हुआ।


                         --डा.भानु प्रकाश नारायण 

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