अपराजेय
मानव जीवन को अपराजेय बनाने की इच्छा
सबके मन में होती है, पर सफल कुछ ही होते हैं।
अधिकांश लोगों की धारणा रहती है कि अपरिमित
शारीरिक अथवा धन की शक्ति से जीवन को
अपराजेय बनाया जा सकता है। कुछ तमाम कुटुंबी
जनों एवं बड़े-बड़े अस्त्रों को जीवन की अपराजेयता
का कारण मानते हैं, किंतु ये सभी धारणाएं मिथ्या
एवं भ्रामक हैं। दुनिया में कितने ऐसे महापुरुष हुए,
जिनके पास न तो कुटुंबीजनों की शक्ति थी और
न धन की। अस्त्र-शस्त्रों की शक्ति भी उनकी
अपराजेयता का कारण नहीं बनी। इसीलिए ऋषियों ने कहा- जो विद्वान है, वही महान है।ज्ञान मानवजीवन को अपराजेय बनाने का सबसे बड़ा साधन है। विवेकानंद जी ने ज्ञान की शक्ति से न केवल अपने अल्प जीवनकाल को अपराजेय बनाया, वरन दुनिया को भी अपराजेयता का मंत्र दे दिया। ज्ञान वह अमोघ अस्त्र है, जिसकी तीक्ष्ण धार के सामने सभी अस्त्र कुंद पड़ जाते हैं। ज्ञानाग्नि से तप्त परिशुद्ध विचारों और उनसे प्रसूत शुभकर्मों में जीवन की अपरिमित अपराजेय शक्ति होती है। इसीलिए ज्ञान की दिव्य शक्ति से दुनिया को भी अनायास ही पराजित किया जा सकता है। अन्य शक्तियों से प्राप्त विजय कल की पराजय का संदेश लेकर आती है। इसलिए वह कभी चिरस्थाई नहीं हो सकती।
ज्ञान सार्वभौमिक, सार्वकालिक और शाश्वत है। सूर्य के प्रकाश, हवा और पानी की तरह उसे प्राप्त करने का अधिकार सभी को है। हनुमान को महावीर उनकी शारीरिक शक्ति के कारण नहीं, ज्ञानशक्ति के कारण कहा जाता है। वह ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं। . ज्ञान की इस शक्ति का अहसास उन्हें बालपन में ही हो गया था। तभी तो उन्होंने ज्ञान के प्रतीक सूर्य को ही निगल लिया। इसीलिए ज्ञान प्राप्ति की कोई उम्र नहीं होती। यह ज्ञान पिपासा देश के प्रत्येक बच्चे के अंदर जागृत होनी चाहिए। तभी वे आत्मनिर्भर होकर जीवन को अपराजेय बना सकेंगे और अपने देश को भी।
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