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गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

तदवीर और तकदीर

मेरे पिताजी मुझसे कहा करते थे कि तदबीर और तकदीर जब दोनों साथ काम करते हैं तभी व्यक्ति सफलता की सीढ़ी चढ़ता है. सिर्फ एक से काम नहीं बनता.इसका उदाहरण उन्होंने बड़ा सटीक दिया था. जिससे कम से कम मेरे दिमाग़ के सारे जाले तो साफ़ हो ही गए।
उन्होंने बैंक के लॉकर के उदाहरण दिया था. जिसकी दो चाभियाँ होती हैं. एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास.
आप के पास जो चाभी है, वह है परिश्रम और मैनेजर के पास जो चाभी है, वह है भाग्य.
जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नहीं खुल सकता.
आप कर्मयोगी पुरुष हैं और मैनेजर भगवान है.
आपको अपनी चाभी लगाते रहना चाहिये. पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे.
कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्यवाली चाभी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाभी न लगा पाएं और ताला खुलने से रह जाए.
मैंने अपने पिताजी की बात गांठ में बांध ली है और अपनी चाभी लॉकर में लगाए रहता हूं. भगवान भी मुझपर मेहरवान रहता है और वह भी यथा-अवसर अपनी चाभी लगाकर मेरी सफलता का मार्गप्रशस्त करता रहता हैं.
मैंने तो अपने पिताजी की सीख गांठ बांध ली है. यदि आपको भी अच्छी लगे तो अपना सकते हैं.

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