इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

सोमवार, 23 नवंबर 2020

स्वभाव

                                                                          स्वभाव 

चर और अचर रूप में निर्मित यह सृष्टि विधाता की अनुपम कृति है। इसलिए इसको चराचर जगत कहा जाता है। इसमें सभी प्राणियों का अपना स्वभाव होता है। वे सदैव उसी अनुरूप व्यवहार करते हैं। कभी उसे अलग नहीं होते। जैसे जल का स्वभाव है शीतलता, अग्नि का स्वभाव है जलाना और धरती का गुण है सहनशीलता। ये सभी अपने गुरु के कभी नहीं छोड़ते। इसलिए यह इनका स्वभाव कहलाता है और यही पहचान भी। अपने इसी मूल स्वभाव में रह कर ये अपना जगत का कल्याण करते हैं।

इस जगत में मनुष्य विधाता की सर्वश्रेष्ठ रचना है, क्योंकि उसने उसे बुद्धि और विवेक से समृद्ध किया है। इसलिए मनुष्य के जीवन का उद्देश्य भी विश्वस्त हैं इसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति करना मनुष्य का धर्म है इसकी सीधी में सर्वाधिक योगदान मनुष्य के स्वभाव का होता है भागवत गीता के पंचम अध्याय में स्वभाव को अध्यात्म कहा गया है स्वभाव निर्यात कर्मों को करता हुआ प्राणी बाप की ओर नहीं बढ़ सका अपितु अभीष्ट सिद्धि को प्राप्त कर लेता है वास्तव में मानव जीवन का प्रथम और अंतिम उद्देश्य अभी गए और मोक्ष की प्राप्ति है आता इनकी प्राप्ति में जो सहायक हो वही मानव का स्वभाव हो सकता है इस देश से प्रेम शांति और सद्भाव मानव स्वभाव की आत्मा है और जीवन यात्रा के साथ ही पाथेय भी। 

देखने में आ रहा है कि अन्य प्राणियों के  विपरीत मनुष्य से अपने mul स्वभाव से भी मुख हो रहा है इसी लिए वह न केवल स्वयं के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी दुख का कारण बन गया है मानव की यह प्रविधि किसी प्रकार शुभ संकेत नहीं कही जा सकती समझना होगा कि इस दुनिया में सुख और दुख का कारण मानव स्वभाव ही है और दुख निवृत्ति का ही तू भी वही है इसलिए अपने एवं जगत के कल्याण के लिए मनुष्य को अपने मूल स्वभाव की ओर लौटना होगा जगत के कल्याण का इससे इतर कोई मार्ग नहीं।  


1 टिप्पणी: