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सोमवार, 1 मार्च 2021

प्रेम का महत्व

     प्रेम के विषय में गौतम बुद्ध ने कहा है, 'इस संपूर्ण जगत में जितना कोई और तुम्हारे प्रेम और अनुराग का भागी है, उतना ही तुम स्वयं हो।' वास्तव में प्रेम वह शब्द है जिसकी व्याख्या असंभव है, परंतु जीवन का सौंदर्य इसी में निहित है। प्रेम एक शाश्वत भाग है। प्रकृति के कण-कण में प्रेम समाया है। इनकी वजह से यह प्रकृति निरंतर पुष्पित, पल्लवित और फलित होती है। प्रत्येक रिश्ता प्रेम के भाव से ही समृद्ध होता है। प्रेम का इतना महत्व होते हुए भी क्या क्या हम उसके वास्तविक अर्थ से परिचित हैं ? रविंद्रनाथ टैगोर कहते हैं , 'प्रेम केवल एक भावना नहीं, एकमात्र वास्तविकता है। यह सृष्टि के हृदय में रहने वाला अंतिम सत्य है।'

    प्रेम ऐसा शब्द है जिसमें प्रकृति की भावनाएं समाहित रहती हैं। प्रेम एक ऐसी नदी है जो कभी समाप्त नहीं होती। प्रेम की डोर पकड़ कर हम इश्वर तक पहुंच सकते हैं। जिसने प्रेम का मर्म समझ लिया तो उसे कुछ और जानने-समझने की आवश्यकता नहीं। प्रेम अत्यंत सुकोमल भाव है। किसी छुई-मुई की नाजुक पंक्तियों की तरह। यह उंगली उठाने पर मुरझा जाता है। इसीलिए प्रेम करने से पहले अंतर्मन की चेतावनी व परामर्श सुनना, समझना और स्वीकार करना नितांत आवश्यक है।

    अटूट प्रेम के लिए कुछ विशिष्ट भावों का होना भी अपरिहार्य है। सत्य,ईमानदारी,परस्पर समझदारी,अमिट विश्वास, पारदर्शिता, समर्पण भावना और एक-दूसरे के प्रति सम्मान जैसे श्रेष्ठ तत्व सच्चे एवं सार्थक प्रेम के आधारभूत अंग होते हैं। प्रेम तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब हम अपनी सभी जिम्मेदारियों को ठीक से पूरा करें। प्रेम लोगों को करीब लाता है। यह किसी भी रिश्ते को खूबसूरत बनाने की सामर्थ्य रखता है। यह एक स्वाभाविक भावना है। यह प्रेम ही है जो हमारे जीवन के तमाम कष्टों को दूर करने की क्षमता रखता है। ऐसे में हमें प्रेम के महत्व को पहचान आना चाहिए और उसके आधार पर अपने जीवन को सवारना चाहिए।


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