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सोमवार, 13 जून 2022

वास्तविक उपलब्धि

 



वास्तविक उपलब्धि

    आज जिस भी पद एवं संपत्ति के आप स्वामी बने हुए हैं, वह कैसे-कैसे अर्जित हुई है, यह आप और ईश्वर भली-भांति जानते हैं। ईश्वर कृत्रिम और पवित्र व्यक्ति के श्रम एवं आस्था की परख करते हैं। मौलिक व्यक्ति छोटी उपलब्धि पर भी आनंदित रहता है और कृत्रिम व्यक्ति बहुत कुछ हड़पने पर भी अशांत और अतृप्त । ईश्वर सहज रूप से चालाकी और पवित्रता के आधार पर ही जीव को कर्मफल का दंड और पुरस्कार सुनिश्चित करते हैं। छल-बल से अर्जित संपूर्ण संपदा यहीं रहकर दूसरों के विनाश का कारक बनती है, जबकि श्रम एवं पवित्रता से अर्जित पूंजी मूल्य और संस्कार बन युगों तक मानवता का दिशाबोध करने की क्षमता रखती है। हमारे अर्जित धन में से वास्तविक श्रम-साधना वाले कितने हैं, हम वस्तुतः उसी के स्वामी हैं, शेष चालाकी से अर्जित पूंजी के हम उन-उन के कर्जदार हैं, जिनकी उनमें श्रम-साधना निवेशित है।

    कर्म का फल जन्म-जन्मांतर तक पीछा नहीं छोड़ता। स्वयं को अत्यधिक चतुर समझने वालों की चालाकी की कीमत प्रभु समय आते ही पूरे समायोजन के साथ वसूल लेते हैं। अपनी शाश्वत संपत्ति वही है, जिस पर मौलिक श्रम - साधना का कण-कण तथा क्षण-क्षण व्यय हुआ हो। अतः यह विशेष रूप से विचारणीय है कि हमारी वास्तविक उपलब्धि क्या है? क्या वह, जिसे हमने जबरन दूसरों की श्रम शक्ति का दोहन करके आहरित किया है, जिसमें रंचमात्र भी हमारे श्रम का अंश समाहित नहीं है। या फिर वह, जो हमारे खून-पसीने की कमाई है। यदि इसका सही मूल्यांकन कर लें तो जीवन स्वयं नए क्षितिज की ओर अग्रसर हो, नए प्रतिमान गढ़ना प्रारंभ कर लेगा। ईश्वर पवित्रता और मौलिकता के पक्षधर हैं। इस प्रकार के व्यक्ति के जीवन में संघर्ष भले ही हों, लेकिन ईश्वर सदैव बड़ी आपदाओं से उसकी रक्षा करते हैं। ईश अनुकंपा से उसके बड़े से बड़े कार्य भी अत्यंत सहजता से स्वयमेव हो जाते हैं

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