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शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

निवेदन



निवेदन

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किसी भी व्यक्ति से कुछ कहने, बोलने या कुछ लेने ,मांगने के लिए निवेदन करना मानव स्वभाव की सुंदर आदत कही जाती है।  उससे मनुष्य के स्वभाव की विनम्रता, शिष्टाचार, अनुशासन की परख हो जाती है इस संसार में सभी प्राणी कहीं ना कहीं एक दूसरे से संबंध हैं। पग-पग पर प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति से सहयोग की आकांक्षा होती है, एक दूसरे के सहयोग के बिना संसार में जीवन यापन संभव नहीं है। प्रत्येक कार्य के लिए दूसरों की जरूरत अनिवार्य रूप से पड़ती है, इसके लिए ज़रूरतमंद व्यक्ति अगर दूसरे व्यक्ति से निवेदन करता है, तो वह कार्य सहायता से पूरा हो जाता है, उस निवेदन से किसी का दिल दुखी नहीं होता है|  लेकिन इस प्रक्रिया के विपरीत उद्दंडता पूर्वक किसी से कुछ कहा या जबरन मांगा जाए तो उस व्यक्ति का दिल बहुत दुखी होता है| आपस में प्रेम के बजाय दुख उत्पन्न होता है| और कार्य की सफलता संदिग्ध हो जाती है।
निवेदन में आदर भाव हो, विनती हो ,तो अनुरोध, निवेदन द्वारा व्यक्ति शत्रु का दिल भी जीत लेता है। किसी भी व्यक्ति से सहयोग लेने के लिए अगर निवेदन किया जाए तो अनजान व्यक्ति भी हृदय से प्रसन्न होकर सहायता प्रदान करने में कभी एकता नहीं है। निवेदन करना शिष्टाचार का प्रमुख गुण है, यही हमारी भारतीय संस्कृत की प्राचीन समय से चली आ रही सकारात्मक सोच, चिंतन परंपरा रही है। जो मनुष्य के अंदर महानता के गुण को बढ़ाने के लिए प्रमुख आधार का कार्य करती है। किसी से जब कोई व्यक्ति निवेदन करता है तो उसका मन प्रसन्नता से झूम उठता है, और वह दिल खोल कर उसकी बात सुनता है, वह अपने जरूरी कार्य को छोड़कर भी उसकी सहायता करने के लिए खड़ा हो जाता है| निवेदन आत्मिक दुहाई का भाव जिसमें कार्य की सहायता के लिए काफी लालसा भरी मांग छुपी रहती है। भगवान से सभी निवेदन करते हुए हाथ जोड़कर कहते हैं,विनती सुन लो हे भगवान| हम सब बालक हैं नादान| 

सामने वाले को श्रेष्ठ मानकर कर्ता  निवेदन करके आदर सम्मान प्रदान करता है|  स्वाभाविक रूप से यह मनुष्य का महान लक्षण है,उसे जो उन्हें अवश्य ही श्रेष्ठता प्रदान करता है। 

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