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शनिवार, 11 जुलाई 2020

मन की अशांति

अशांति अतीत की यादें और भविष्य की कल्पना ही मन में अशांति को जन्म देकर इसे पालित वा पोषित करती हैं। वर्तमान कभी भी अशांत नहीं होता है। कल क्या हुआ था, और कल क्या होगा, इसी को यदि हम अपने मस्तिष्क से निकाल दें, या ना आने दे तो, मस्तिष्क में केवल वर्तमान ही शेष रह जाएगा, जो मन की पूर्ण शांति की स्थिति होगी। मानव मन का यह प्राकृतिक नियम होता है कि जिस बात को लेकर हम सो जाते हैं वही बात लिए हुए हम सुबह जागते हैं। यदि रात में किसी चिंता को लेकर हम सोए हैं, तो सुबह जागने के समय ही वह चिंता मस्तिष्क के द्वार पर प्रतीक्षा करती हुई खड़ी होती है। लेकिन जो व्यक्ति अपने और अपने चित्त के बीच में अतीत और भविष्य को नहीं लाता है उसका चित्त एकदम निर्मल और शांत हो जाता है। जीवन में कभी भी कोई अशांति नहीं होगी, यदि हम चित्त के साथ बिना कोई सोच-विचार के रहना सीख लेते हैं। फिर हम जो भी कार्य करेंगे उसमें हमारा मन पूरी तरह से लगेगा । इसी से हृदय में प्रबल शांति अनुभव होती है। ध्यान की क्रिया में भी कुछ ऐसा ही होता है, जिसमें हमारा चित्त पूरी तरह से लीन हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति अपने काम के प्रति एकदम बहने लगता है, तो ऐसा काम भी बड़े-बड़े योगी महात्माओं द्वारा किए जा रहे ध्यान के समान ही हो जाता है। किसी काम के प्रति इस प्रकार का बहना हमें ईश्वर के करीब लाता है । हम अशांत इसलिए होते हैं क्योंकि हमारे भीतर कुछ बनने की महत्वाकांक्षा है। जिसकी दौड़ काफी गहरी है। व्यक्ति यदि जीवन के साथ आत्मलीन होना चाहता है, तो उसे अपने अंदर कुछ ना होने की भावना को विकसित करना होगा तथा कुछ होने की दौड़ से अपने को अलग करना होगा। यदि कोई ऐसा करने में सफल हो जाता है तो वह दिन दूर नहीं होगा जब वह जो चाहेगा वह अनायास ही होना शुरू हो जाएगा। अशांति को मिटाने के लिए ध्यान साधना एक कारगर साधन हो सकता है। ध्यान और प्राणायाम के द्वारा हम मन मस्तिष्क में आने वाले कष्टकारी विचारों को काटते हैं। या यूं कहें कि जैसे हम घर में झाड़ू लगाकर धूल अलग करते हैं, या नहाते समय साबुन लगा के शरीर के मैल को दूर करते हैं। उसी तरह से हम मन के मैल को दूर करने के लिए ध्यान-प्राणायाम करते हैं। सांसों के द्वारा मन में झाड़ू लग जाता है, और मन के अंदर जो पीड़ा देने वाले विचार होते हैं वह दूर हो जाते हैं। ध्यान-साधना हेतु आध्यात्मिक गुरु द्वारा तकनीकी दी जाती है, ताकि हम मन के मैल को दूर कर सकें। इसके लिए आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर जी द्वारा अनुसंधािनित सुदर्शन क्रिया एक बहुत ही अच्छी क्रिया है, जिसका मैं स्वयं पालन करता हूं। और यह कह सकता हूं कि यह मन के मैल को दूर करने में बहुत हद तक सहायक है। इसी तरह से जग्गी वासुदेव सद्गुरु जी द्वारा इनर इंजीनियरिंग नाम से एक क्रिया सिखाई जाती है, जिसके बारे में भी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है। सभी गुरुओं ने अपने अपने तरीके से मन में पीड़ा की गहरी छाप को मिटाने के तरीके बताए हैं। इसमें योगदा सत्संग मंडल रांची के प्रणेता योगानन्द जी ने भी एक क्रिया विकसित की है जिसका नियमित अभ्यास करके मन के मैल को हटाया जा सकता है। मन में अच्छे विचारों का पोषण हो और बुरे विचार जितनी जल्दी हो सके दूर हो जाएं तो शांति जल्दी आ सकती है। बुरे विचार क्या हैं इसके बारे में भी बहुत साहित्य उपलब्ध है लेकिन जो सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला विचार है ,वह है किसी के द्वारा की जाने वाली निंदा या अपमान। यह निंदा या अपमान बहुत आसानी से मन से उतरता नहीं है। और कई बार तो यह बहुत खतरनाक रूप ले लेता है। जिसने निंदा की होती है उसका प्राण लेकर ही समाप्त होती है इसलिए बुरे विचारों से निजात पाना अत्यंत आवश्यक है।

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