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सोमवार, 6 जुलाई 2020

स्वयं पर विजय

स्वयं पर विजय

 दूसरों से तो सभी लड़ लेते हैं।  विरोधी, विपक्षी या शत्रु से लड़ कर हम उन्हें परास्त भी कर सकते हैं।  इसमें कोई खास बहादुरी नहीं है।  अगर किसी को योद्धा कहलाने का इतना ही शौक है तो पहले वह अपने भीतर बैठे शत्रु से लड़ कर तो देखें कि क्या वह अपने दुर्गुण, बुराई जैसे असुरों से लड़ने में कामयाब हो सकता है? इसी से पता चलता है कि वह कितना बड़ा शूरवीर है? सिकंदर ने कहा था कि मैं  दुनिया को जीतने में सफल रहा पर स्वयं से हार गया क्योंकि मेरे अंदर ही लोभ  मोह अहंकार प्रचुर मात्रा में भरा रहा। 

 वस्तुतः व्यक्ति समझ नहीं पाता कि मानव जीवन सार्थक कैसे बनेगा? यह सारी सृष्टि परमात्मा के द्वारा रचित है। इस सृष्टि में वही जीतता है, जो स्वयं के अंदर के दुर्गुणों से लड़ कर उन्हें परास्त कर देता है और सिर्फ परमात्मा के सत्य गुणधर्म को स्वयं में स्थापित करने के लिए स्वयं को राजी कर लेता है।  स्वयं के अंदर की बुराइयां, कमजोरियां मनुष्य को पग-पग कर परास्त करती हैं और व्यक्ति प्रत्येक पल हारता नजर आता है।  इन कमजोरियों ,बुराइयों को दूर किए बिना जीवन की ज्योति न कभी प्रज्वलित होती है और अंतर्मन का तिमिर ही दूर होता है। सदा भटकाव अशांति, अभाव, दुख, परेशानी, समस्या बनी रहती है।  व्यक्ति के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह अहं  जैसे पिसाच  जब तक मरते नहीं, तब तक जीवन में देवत्व की कल्पना अधूरी ही रहती है।  इन्हें दूर करके ही अंतर्मन को देवत्व के प्रकाश से आलोकित करना संभव हो पाता है। 

 दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं, वह पग-पग पर स्वयं के ही अंदर की कमजोरियों को दूर कर दे रहे हैं।  प्रायः देखा जाता है कि व्यक्ति दूसरों को बराबर कोसता नजर आता है कि तुम्हारे अंदर अमुक दुर्गुण है।  पर उससे पहले अपने अंदर के दुर्गुणों को ढूंढने की कोशिश नहीं करता।  हम बदलेंगे तभी युग बदलेगा । हम सुधरेंगे तभी युग सुधरेगा।  परिवर्तन की शुरुआत वास्तव में स्वयं से होती है. 


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