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बुधवार, 14 जुलाई 2021

परमात्मा का स्मरण सबसे बड़ी औषधि



    देश और दुनिया पुनः तन, मन और धन का आरोग्य प्राप्त करे, इसीलिए हमारे देश में कोरोना से बचाव के लिए जो दिशा- निर्देश बताए जा रहे हैं, उनका सभी लोग ठीक तरह से पालन करें, यह आज की आवश्यकता है। इन दिनों संयम बरतने को मैं अनुष्ठान कहता हूं। यह तपस्या का पर्व है। इन अनुष्ठानी दिनों में हम दया करें, हम थोड़ी तपस्या करें। अपने आप को सम्यक बनाएं। मिली हुई छूट का दुरुपयोग करके फिर महामारी का और भोग न बनें। अपने मन को धैर्य दें। मन को समझाएं। वह कहीं निराश, हतोत्साहित ना हो जाए। नियंत्रण करें, दया करें,दमन यानी सहन करें। प्रभु ने दिया हो तो दान करें। कोई वस्तु ना दे सके तो भी संवेदना कोई कम दान नहीं है।


    स्वामी शरणानंद जी के मानवता के 11 मूल सिद्धांत हैं। देश-काल का दर्शन करते हुए इस विशेष परिस्थिति में 11 में से 5 सूत्र ले सकते हैं। पहला है, विचार का प्रयोग अपने पर और विश्वास का प्रयोग दूसरों पर अर्थात न्याय अपने लिए और क्षमा दूसरों के लिए। सबल के साथ न्याय होना चाहिए, लेकिन असमर्थ हो क्षमा मिलनी चाहिए। दूसरा सूत्र है, दूसरों के कर्तव्य को अपना अधिकार मत समझो। दूसरों की उदारता को अपना सामर्थ्य मत समझो और दूसरों की निर्मलता को अपना बल मत समझो। तीसरा है, निकटवर्ती जैन समाज की यथाशक्ति क्रियात्मक सेवा करो। इस समय की परिस्थितियों में यह सूत्र बहुत महत्वपूर्ण है। अगर हम 5 व्यंजन खाते हैं तो उसमें से तीन कम करें और जिसके पास कुछ नहीं है उस तक पहुंचाए। 


    चौथा सूत्र यह है कि शरीर को श्रमी बनाएं, मन को संयमी बनाएं, बुद्धि को विवेकवान बनाएं। हृदय अनुरागी बनाएं और अहंकार से मुक्त रखें। पांचवा है, सिक्के से वस्तु महान है, वस्तु से व्यक्ति महान है, व्यक्ति से विवेक महान है और विवेक से सत्य महान है। इस समय का सत्य यही है कि महामारी फैली है। ऐसे में जो भी करें, विवेक के साथ करें। एक-एक कदम विवेकपूर्ण हो। खुद तो स्वस्थ रहें ही, साथ ही किसी अन्य के अस्वस्थ हो जाने का कारण न बन जाएं, इसका विशेष ध्यान रखें।


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