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शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

नया दौर

(कवि नहीं हूँ  , दिल की बात मैं करता हूँ)

कवि नहीं  हूँ ,  दिल की बात मैं करता हूँ
क्या करना उचित है, चिंतन मैं करता हूँ

जिस संगठन से , रोजी रोटी है मिलता
क्या पाप नहीं,  मेहनत जो दिल से न करता
समय आएगा,  तिजोरी इक दिन खत्म हो जाएगा
राष्ट्र विकास की संकल्प का पहिया,  कहीं रुक जाएगा  II

कवि नहीं हूँ , दिल की बात मैं करता हूँ
क्या करना उचित है, चिंतन मैं करता हूँ


निगमीकरण की, हवा चली है
उत्कृष्टतम सेवा, बन जाने को
क्या रेलवे के कर्मचारी, सक्षम नहीं?
विकास की दौर में, ढल जाने को  II

कवि नहीं हूँ  , दिल की बात मैं करता हूँ
क्या करना उचित है, चिंतन मैं करता हूँ

सरकारों के, वश में  नही है
बदलाव मनोवृत्ति, में कर पाने की
यह तो आत्मचिंतन, का विषय वस्तु है
 बदलाव के दौर में, स्वयं ढल  जाने की  II

कवि नहीं हूँ , दिल की बात मैं करता हूँ
क्या करना उचित है, चिंतन मैं करता हूँ

खुद को तुम ना ,  कम है समझना
मेहनत को सिर्फ तू ही, फर्ज है समझना
पर हां बदलाव के, ताजे झोंके को
तू सदा ही चुनौती , है समझना  II

     राजीव कुमार
     यानि/सी.टी.सी


                         
               

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