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गुरुवार, 12 मई 2022

जीवन प्रबंधन

जीवन परमात्मा की सबसे अमूल्य देन है। यूं तो जीवन किसी युक्ति से बीत ही जाता है, परंतु यदि इसको संपूर्ण संभावनाओं के साथ जीना है तो लक्ष्य निर्धारित कर उस पर दृष्टि टिकाए रहना बेहद जरूरी है। आज सभी प्रकार के प्रबंधन पर विशेष पाठ्यक्रम हैं। हालांकि जीवन प्रबंधन भी एक कला है, जो यथार्थ है और आदर्श भी। दो-चार शब्दों में इस जीवनशैली को विस्तार देना किसी के सामर्थ्य की बात नहीं।


माता-पिता अपनी संतान को प्रारंभ से बाल सुलभ क्रियाओं से जीवन प्रबंधन का सबक सिखाते रहते हैं, ताकि वह घर के सुरक्षित माहौल से निकल जब कभी बाह्य संसार में जाए तो उसकी छोटी-बड़ी • जटिलताओं से पार पा सके। हम बड़े होकर अपनी गलतियों से भी सीखते रहते हैं। फिर भी प्रायः आयु के किसी पड़ाव पर कहीं हमसे कुछ भूल-चूक हो ही जाती है। फिर वह चाहे आर्थिक हो, वाणी हो या फिर पारस्परिक संबंधों की हो। शायद जीवन प्रबंधन में कुछ अल्पता रह गई हो। कई लोगों की मान्यता है, कि जीवन प्रबंधन निजी शांति और आनंद के लिए किया जाता है जिसे कोई पुस्तक या पाठ्यक्रम नहीं सिखा सकता। अपने माता-पिता, बड़े-बुजुर्ग तथा गुरु-ईश्वर को मान दे उनके बताए मार्ग पर चलने का उपक्रम ही जीवन प्रबंधन का श्रेष्ठतम मार्ग है।

आज के कारपोरेट संसार में जीवन में अनिश्चितता एवं तनाव एक साधारण सी बात हो गई है, लेकिन हम सब यह समझने में चूक जाते हैं कि जीवन आत्मा, मन और शरीर को परिभाषित करता है। वास्तव में परमपिता का ध्यान कर जीवन का युक्तिसंगत प्रबंधन स्वयं की योग्यता, सामर्थ्य और शक्ति को पहचान लक्ष्य की ओर बढ़ते जाना है। प्राचीन भारतीय ज्ञान, योग, ध्यान, सचेतना को अपना कर ही हम अपने जीवन को प्रभावी ढंग से व्यतीत कर सकते हैं, न कि पुस्तकीय ज्ञान द्वारा एक बार मन में इच्छाशक्ति को प्रबल कर सकारात्मक विचारों को सही दिशा दें तो जीवन सफल हो जाए।

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