इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

मंगलवार, 24 मई 2022

निंदा का परित्याग

            मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में निर्वहन के लिए व्यक्ति के सामाजिक गुणों का अत्यंत महत्व है। गुणी व्यक्ति को प्रत्येक जगह सम्मान की प्राप्ति होती है। संसार के प्रत्येक प्राणी में कुछ गुण तो कुछ अवगुण पाए जाते हैं, परंतु कुछ लोग हैं जो दूसरे के अवगुणों को ही देखते हैं। वे किसी भी सकारात्मक पक्ष में नकारात्मकता देखने के अभ्यस्त हो जाते हैं। प्रायः ऐसे लोगों में निंदा की प्रवृत्ति पाई जाती है। ऐसा करके खुद को समाज में श्रेष्ठ एवं दूसरे को नीचा साबित करना चाहते हैं। निंदा एक नशे की भांति है, जो एक बार इसका आदी हो गया, वह दिन-प्रतिदिन इसके पाश में जकड़ता चला जाता है। मनीषियों ने निंदा को दुर्व्यसन के समान माना है, जो निंदा करने वाले व्यक्ति को अंदर ही अंदर नैतिक रूप से समाप्त करती रहती है। एक बार एक आचार्य अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान कर रहे थे। शिक्षा प्राप्ति के दौरान एक शिष्य अन्य शिष्यों की ओर संकेत करते हुए आचार्य से कहने लगा कि 'वे अपना कार्य सही से नहीं कर रहे हैं। मुझे लगता है इन लोगों को कार्य करना ही नहीं आता।' आचार्य यह बात सुनकर बोले, 'तुमको छोड़कर अन्य सारे शिष्य सही से कार्य कर रहे हैं।' इस पर शिष्य असहज हो गया। उसने आचार्य से पूछा, 'वह कैसे?' आचार्य बोले, 'क्योंकि वे लोग अपने-अपने कार्य में संलग्न हैं, किंतु तुम अपने कार्य पर ध्यान न देकर, दूसरों के कार्य की


निंदा करने में अपने समय की बर्बादी कर रहे हो ।'

            वास्तव में जो व्यक्ति सदैव निंदा कार्य में व्यस्त रहता है, वह अपने साथ-साथ अन्य व्यक्तियों का भी समय बर्बाद करता है। विद्वानों का मत है कि हम बार-बार जिन अवगुणों के लिए लोगों की निंदा करते हैं। कुछ समय पश्चात हमारे अंदर भी उन अवगुणों का वास होने लगता है और धीरे-धीरे हम उनसे घिर जाते हैं। अतः आवश्यक है कि हम दूसरों के अवगुणों की खोज के बजाय, उनके गुणों का अवगहन करते हुए, अपने जीवन के कर्तव्य मार्ग पर निरंतर चलते रहें।'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें