चित्त की दृढ़ता
प्रत्येक मनुष्य के जीवन का एक परम लक्ष्य या साध्य होता है। इस साध्य की प्राप्ति के लिए शुचितापूर्ण साधन का होना आवश्यक है। अनैतिक साधनों से प्राप्त साध्य सम्मानदायी नहीं होता । साथ ही साथ इस साध्य की प्राप्ति के लिए कर्म भी अनिवार्य है, क्योंकि बिना कर्म के कोई प्राणी नहीं रह सकता। कर्म के बिना साध्य की प्राप्ति की कामना नहीं की जा सकती। इन पहलुओं के साथ एक और महत्वपूर्ण पहलू है और वह है साध्य के प्रति दृढ़ता। यह दृढ़ता व्यक्ति को उसके साध्य पथ से भटकने नहीं देती।
यदि हमें अपने कार्यस्थल जाना है तो कार्यस्थल हमारा लक्ष्य होगा। यदि हम वहां तक साइकिल से जाते हैं तो साइकिल हमारा साधन हुई। साइकिल रूपी साधन से लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें निरंतर कर्म रूपी पैडलों को चलाना होगा। यदि हम पैडल नहीं चलाएंगे तो साइकिल का चलना संभव नहीं होगा, परंतु मात्र पैडलों को निरंतर चलाना और साइकिल का चलते जाना हमें हमारे वांछित लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकता। इसके लिए आवश्यक है कि हम न केवल साइकिल के हैंडल को पूरी दृढ़ता के साथ, ठीक से पकड़ें, बल्कि उसे सही दिशा की ओर भी रखें। यदि हमने हैंडल को ठीक से नहीं पकड़ा तो हम भटककर कहीं भी पहुंच सकते है या दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में यह नितांत आवश्यक है कि शुचितापूर्ण साधन के साथ निरंतर कर्म भी किया जाए। कर्म की दिशा को नियंत्रित करने के लिए चित्त की दृढ़ता
आवश्यक है। चित्त की दृढ़ता के बिना साधन
भले ही चलता रहे, परंतु साध्य को प्राप्त करना
संभव नहीं होगा। इससे जीवन की नैया अधर
में ही हिचकोले खाती रहेगी और हम जीवन को
सार्थक नहीं बना सकेंगे। चित्त की दृढ़ता के लिए
आवश्यक है कि हम अपने मन को नियंत्रण में लें।
अन्यथा सभी प्रयास निरर्थक होते जाएंगे।
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