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बुधवार, 25 जनवरी 2023

ध्यान का प्रकाश


ध्यान का प्रकाश


आज मानव तनाव की नाव में बैठकर जीवन की यात्रा कर रहा है । बच्चा तनाव के साथ ही जन्म लेता है। गर्भ का पोषण ही अशांत विचारों के साथ होता है तो बच्चे में तनाव के बीज कैसे नहीं होंगे। हिंसा के इस युग में प्रश्न है कि शांति कैसे मिले? तनाव से मुक्ति कैसे मिले? मन को स्थिर कैसे बनाया जाए ? इन प्रश्नों का उत्तर है ध्यान । इसीलिए महावीर ने आत्मा को समय माना। उन्होंने ऐसा इसलिए माना कि जिस दिन आप इतने शांत एवं संतुलित हो जाएं कि वर्तमान आपकी पकड़ में आ जाए तो समझना चाहिए कि आप ध्यान में प्रवेश के लिए सक्षम हो गए हैं। ध्यान जीवन की आंतरिक अनुभूति है, जिसका प्रभाव हमारे बाह्य जीवन में परिलक्षित होता है। इसीलिए बाहर के जगत में समय और क्षण के भीतर घटने वाली घटनाओं की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें रूपांतरित करने का प्रयास होना चाहिए। जीवन ध्यान से प्रेरित होना चाहिए और उसमें नवप्राणों का संचार जरूरी है। जीवन को सार्थक बनाने के लिए मनुष्य को स्वयं ही प्रयत्न करना होता है। क्योंकि जीवन कोई लकड़ी नहीं है, जिसे आकार देने के लिए बढ़ई की जरूरत है। जीवन कोई पत्थर भी नहीं है, जिसे गड़ने के लिए कारीगर की अपेक्षा हो। जीवन कागज भी नहीं, जिसे सजाने के लिए चित्रकार की आवश्यकता हो। जीवन प्राणवान है, जीवंत है, चैतन्य है, लकड़ी, पत्थर और कागज़ की तरह जड़ नहीं है। उसका निर्माण स्वयं मनुष्य को करना है। इसके लिए संतपुरुषों का मार्गदर्शन एवं ध्यान का सहारा कारगर है।


मन को एकाग्र और दुख मुक्त कर हम अपने मस्तिष्क की अधिकतम क्षमता का उपयोग कर सकते हैं। इस अवस्था में हम अपने भीतर की यात्रा आरंभ करते हैं। हमारे मन-मस्तिष्क से निकलने वाली तरंगें व्यवस्थित होने लगती हैं और सोई हुई शक्तियां जांगने लगती हैं। हम उत्साह और उल्लास से भर जाते हैं।

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