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मंगलवार, 15 मार्च 2022

संतुलित जीवन

यात्रा जब हम जीवन यात्रा को संतुलित आकार देंगे, तभी हमारे जीवन में न सांप्रदायिकता होगी, न महत्वाकांक्षाएं होंगी, न अमीर-गरीब का भेद होगा, न ऊंच-नीच होगी, न गलाकाट प्रतिस्पर्धाएं होंगी, न अंधविश्वास होंगे और न अर्थ-शून्य परंपराएं होंगी। क्यों न हम जीवन के इस क्रम को जारी रखते हुए ऐसे जीवन की कल्पनाओं को साकार करें। अध्यात्म के क्षेत्र में अकेले जीने की बात आत्मविकास का एक सार्थक प्रयत्न है, क्योंकि वहां शुद्ध आध्यात्मिक चिंतन रहता है कि व्यक्ति अकेला जन्मता है और अकेला मरता है। यहां कोई अपना-पराया नहीं है । सुख-दुख भी स्वयं द्वारा कृत कर्मों का फल है। हम संतुलित जीवन-दर्शन को सामने रखकर जीवन को अधिक सार्थक बना सकते हैं। ऐसे ही सोच को विकसित करते हुए हम एक नए जीवन की यात्रा करें, उठें, चलें, नए पद-चिन्ह बनाते हुए जीवन के सार्थक मुकाम तक पहुंचें।

'मैं जो कहता सत्य वही है, तू जो कहता सत्य नहीं है।' आग्रह की इस वृत्ति को हम छोड़ें। भगवान महावीर का अनेकांत दर्शन हमारे जीवन का भी दर्शन हो। हम सब आग्रह और अहम् को हल्का करके सहयात्रा करेंगे तभी जीवन अधिक सुखद और सार्थक होगा। हमारी जीवन यात्रा को सार्थक बनाने के लिए जरूरी है प्रतिस्पर्धा की होड़ में न दौड़ें, स्वयं की भूलों को ईमानदारी से स्वीकार करें, उतावलेपन में गुणवत्ता को न घटाएं, समस्याओं से घबराएं नहीं, समाधान खोजने में शक्ति लगाएं, हर व्यक्ति नया सोच, नई राहें तलाशे, साथियों की आलोचना न करें, अकेले में गलती का अहसास कराएं, सकारात्मक सोच का जादू जगाएं, चित्त को मंगल भावनाओं से भावित रखें। हमें परिस्थिति, प्रवृत्ति, प्रकृति एवं पर दृष्टिपात रखते हुए जीवन यात्रा को सफल बनाना है। हमारा सही सोच एवं सघन शक्ति योजनाबद्ध होकर लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में लगेगी तो निश्चित रूप से जीवन की विकास यात्रा की कल्पना को मूर्त रूप दे पाएंगे।

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