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मंगलवार, 15 मार्च 2022

होली आई रे….........

होली एक ऐसा महापर्व है जो मनुष्य को प्रकृति के साथ -साथ जीवनरस के आस्वाद का अवसर प्रदान करता है और चित् चित्रण को आंनदमय बनाता है। होली की वैदिक कालीन और शास्त्रीय प्रमाणिकता है, जिसमें हरिद्रोही हिरण्यकशिपु द्वारा भक्त प्रह्लाद को अग्नि में जलाने का षड्यंत्र,पूतनावध , महाराजा मनु तथा चैतन्य महाप्रभु का जन्म दिवस भस्म हुए कामदेव को पुनर्जीवित करने , बच्चों को भयभीत करने वाले असुर का बच्चों द्वारा ही लकड़ी जलाकर अंत करने की खुशी में होली को मनाने का वृत्तांत अलग-अलग ग्रंथों में मिलता है । भारतीय संस्कृति में मुक्ति के लिए मन वचन कर्म और ध्यान को माध्यम बताया गया है , होली ही ऐसा उत्सव है, जिसमें प्रेम रस में मन ध्यान मग्न रहता है, उसके सांस्कृतिक एवं सामाजिक धारा के साथ कर्म योग की साधना चलती है ,होली देह को नहीं मानव मन को भिगोती है। होली केवल बाहर की नहीं अंदर की भी है जिस प्रकार सिर्फ लकड़ी जलाकर होलिका दहन संभव नहीं है उसी प्रकार केवल रंग लगाकर होली का आनंद पूरा नहीं हो सकता ।मन के सभी विकारों और शक्तियों को जलाना ही होलिका दहन है, उसी प्रकार चेतना को रस रंग में सराबोर करना ही होली है ।होली का उत्सव सनातन है एहसास है , कृष्ण के साथ वृंदावन में होली का महाराज से तो राम के साथ मर्यादा का पालन है यह भी चेतना को शाश्वत रूप से रंगीन बनाने की यात्रा है ।फिर महादेव के साथ अनंत होली है शिव होली है ,होली में शिव ही दोस्त है ,उससे अपनी चेतना का आरोहण कराना जब चेतना उत्सव मनाती है तो जीवन बहुयामी होता है । प्रेम के रंग से प्रेम की प्राप्ति होती है तो होली के साथ सब रंगों का संयोजन है निश्चित ही व्यक्ति को प्रेम के विद्युत सोपान तक पहुंचाता है होली के रंग कुंठा से मुक्त करते हैं ,भेद मिटाकर सभी को अवैध रूप से अभिन्न कर देते हैं होली के रस के कारण ही तुलसी ने मानस में लिखा है- "सगुणोपासक मोक्ष न लेहिं।" होली हमारी चेतना का उत्सव है चेतना में प्रभावित पीड़ित रंगो का उत्सव है ।कबीर ने कहा है कि जिसने मन की गांठ नहीं खोली , वह होली के उत्सव को महसूस नहीं कर सकेगा ,होली का तात्पर्य रस के साथ रंग । लोक से लेकर साहित्य तक इस उत्सव की मिठास फैली हुई है । "कन्हैया घर चलो गुइयां आज खेले होरी।" गुनगुनाते हुए सखियां माखन चोर के घर धावा बोलती है, और कृष्ण समर्पण कर देते हैं। सखियां उन्हें जी भरकर अपने रंग में रंगती है। ऐसा रंग की परम सत्य कृष्ण गोपियों की छछिया भर छाछ पर नाचने के लिए विवश हो जाता है । लीला करता है, रास रचाता है, माखन चुराता है, वंसी बजाता है ।

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