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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

मितव्ययिता

 मितव्ययिता


मनुष्य जीवन भर कुछ न कुछ कमाता और व्यय करता है। अर्जित करना, कमाना मानव प्रवृत्ति है। फिर यह कमाई केवल द्रव्य हो, यह कहा नहीं जा सकता। कई बार व्यक्ति कठिन परिश्रम के बाद द्रव्य के स्थान पर अनुभव भी कमाता है। यह भी उसकी कमाई है। ऐसे ही धन के अतिरिक्त, संतोष, अनुभव, ईमानदारी और पुण्य आदि भी कमाए जा सकते हैं। जब व्यक्ति कमाता है, तो स्वाभाविक रूप से कमाई गई वस्तु खर्च भी होती है। मनुष्य कई बार मितव्ययिता के महत्व को किनारे रखकर आंखें मूंदकर खर्च करने लगता है। अधिक व्यय भी श्रेयस्कर नहीं होता। इससे पछतावा ही होता है।

हमें मितव्ययिता के महत्व को समझना चाहिए। वाणी की मितव्ययिता कई विवादों से बचाती है। ठीक इसी प्रकार धन की मितव्ययिता हमें भविष्य में आने वाले संकटों के भय से मुक्त करती है। यदि हम विवेकपूर्ण तरीके से धन का व्यय करते हैं, तो निश्चित ही यह हमारे लिए लाभदायक सिद्ध होता है। धन कमाना एवं उसका प्रबंधनपूर्वक व्यय करना ही बुद्धिमानी है। कई लोग ऐसे होते हैं जो जीवन भर धन कमाने के पश्चात भी अभावों में जीते हैं। दरिद्रता उन्हें घेरे रखती है। वे हमेशा चिंताग्रस्त रहते हैं। इसका केवल एकमात्र कारण है उनका खराब वित्तीय प्रबंधन। यदि वे मितव्ययिता के महत्व को समझ जाएं, तो फिर कभी परेशान नहीं रहेंगे।

कंजूस एवं मितव्ययी व्यक्ति में अंतर होता है। मितव्ययी को कंजूस की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। कंजूस जहां उपहास का पात्र होता है, तो दूसरी ओर मितव्ययी व्यक्ति को लोग सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। कंजूस व्यक्ति अपनी इच्छाओं को समाप्त कर देता है। वहीं मितव्ययी अपनी इच्छाओं को योजनाबद्ध रूप से पूरा करके प्रसन्न रहता है। हमारे पूर्वजों ने सदैव मितव्ययिता को प्रोत्साहित किया है। हमें भी अपने जीवन में मितव्ययिता को अंगीकार कर खुशहाली को आमंत्रण देना चाहिए। मितव्ययिता सुखद भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती है। 

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