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सोमवार, 4 अप्रैल 2022

नवरात्र का मंगल संदेश

नवरात्र वस्तुतः शक्ति उपासना का पर्व है। वर्ष में दो बार आकर यह पर्व सृष्टि के कण-कण में शक्ति का अहसास कराता है। न केवल यह जगत, वरन संपूर्ण ब्रह्मांड शक्ति से संचालित है। शक्ति के अभाव में शिव भी शव तुल्य हो जाता है। शरीर की समस्त इंद्रियां शक्ति केंद्रित हैं। इनकी शक्ति क्षीण होने पर पूरा शरीर मृत पिंड हो जाता है, क्योंकि शक्ति का अभाव ही मृत्यु है। इसलिए ऋतुओं के संधिकाल में दो बार आकर यह पर्व प्रकृति की उपासना और प्रकृति से जुड़ने का संदेश देता है।


चूंकि इस काल में रोग आने की संभावना अधिक रहती है। अतः यह पर्व सात्विक आहार विहार का पालन करते हुए शक्ति स्वरूपा मां की उपासना कर हर व्यक्ति को शक्ति अर्जित करने का सुअवसर प्रदान करता है। आसुरी एवं तामसी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने वाली मां के विविध रूप तामसी वृत्तियों से दूर रहने का संदेश देते हैं। इसलिए दुर्व्यसनों से मुक्ति इस पर्व का महान संदेश है।

नवरात्र उपासना में घट स्थापन तथा जौ बोने का विशेष महत्व है। घट इस शरीर का प्रतीक है। शुद्ध जल और पत्र-पुष्पों से युक्त घट शरीर में जलतत्व की महत्ता और प्राकृतिक पर्यावरण को शुद्ध रखने का संदेश देता है। जौ बोना जहां हरित पर्यावरण का प्रतीक है, वहीं 'जो बोओगे वही काटोगे' का संदेश देकर मनुष्य को सत्कर्मों की ओर प्रेरित करता है। नवरात्र नारी महिमा और सम्मान का पर्व भी है। आसुरी शक्तियों का विनाश करने वाले दुर्गा के विविध रूप याद दिलाते हैं कि नारी अबला नहीं है। वह चाहे तो चंडी और काली बनकर जुल्म करने वाले महिषासुरों का स्वयं संहार कर सकती है। जहां विभिन्न मांगलिक अवसरों पर कन्या पूजन की परंपरा हो, वहां कन्या भ्रूण हत्याएं शोभा नहीं देतीं। अतः सच्चे अर्थों में शक्ति स्वरूपा नारी सम्मान को प्रतिष्ठापित करना नवरात्र महोत्सव का मंगल संदेश है।

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