इस ई-पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपने लेख कृपया sampadak.epatrika@gmail.com पर भेजें. यदि संभव हो तो लेख यूनिकोड फांट में ही भेजने का कष्ट करें.

सोमवार, 4 जुलाई 2022

सत्य की शक्ति

 सत्य की शक्ति


संसार में सत्य को सबसे सुंदर कहा गया है। हमारे शास्त्र भी कहते हैं कि सत्य के लिए किसी से भी संघर्ष करने के लिए स्वयं को सदैव तत्पर रखना चाहिए। एक सत्य ही तो है जो मनुष्य को सौ झूठ बोलने से बचा लेता है। सत्य की ऐसी महत्ता - महिमा होते हुए भी संप्रति संसार में असत्य का बोलबाला बढ़ा है। हालांकि असत्य का आश्रय लेने वालों को सदैव यह स्मरण रखना चाहिए कि अंत में विजय सत्य के खेमे का ही वरण करती है। वास्तव में जहां सत्य है, वहीं धर्म है और जहां धर्म वहीं विजय है।

यदि हमारी जीवन रूपी इमारत सत्य रूपी नींव पर खड़ी होगी तभी हम उसे निरंतर ऊंचाई प्रदान करते हुए उसकी प्रकृति को संरक्षित रख पाएंगे। सत्य के महत्व पर बुद्ध ने कहा कि सत्य को छोड़कर जो असत्य बोलता है, धर्म का उल्लंघन करता है, परलोक की जिसे चिंता नहीं है, वह व्यक्ति बड़े से बड़ा पाप कर सकता है। इसलिए असत्य का परित्याग ही श्रेयस्कर है। मनीषी कहते हैं कि 'मनसा वाचा कर्मणा' यानी मन, वचन और कर्म से सत्य् बोलना चाहिए। जो विचार मन में हों वही वाणी में भी होने चाहिए और उसी के अनुरूप ही मनुष्य का व्यवहार भी होना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि मन, वचन और कर्म से अलग रहने वाले पूर्णरूपेण सत्य का आचरण नहीं कर सकते।

गांधी जी जैसे महामानव सत्य को निरपेक्ष सत्य के रूप में ग्रहण करते हैं। सत्य को ईश्वर का पर्यायवाची बताते हैं। उसे अपनी नीति का अहम अवयव मानते हैं। इसी सत्य के प्रति निष्ठावान हैं। वास्तव में हमारे अस्तित्व से संबंधित समस्त गतिविधियां सत्य पर केंद्रित होनी चाहिए। सत्य ही हमारे जीवन का प्राण तत्व होना चाहिए, क्योंकि सत्य के बिना व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। यह अवश्य हो सकता है कि उसे क्षणिक सफलता मिले जाए, लेकिन सत्य के अभाव में स्थायी सफलता और शांति कभी प्राप्त नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें