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मंगलवार, 26 जुलाई 2022

अधिकार मांगने की कला

अधिकार मांगने की कला 

    अधिकार सशक्त व्यक्ति को स्वतः ही मिल जाते हैं। इसका अर्थ यही हुआं कि यदि आपको अधिकार चाहिए तो स्वयं को सशक्त बनाना होगा। सशक्त व्यक्ति की बात ध्यान से सुनी जाती है। वंचित व्यक्ति अधिकारों की मांग न सुने जाने पर ध्यान आकृष्ट करने के लिए क्रोध, उत्तेजना, हिंसा या विध्वंस द्वारा शक्ति प्रदर्शन का मार्ग अपनाता है। उन्हें लगता है कि इस तरह उनकी बात गंभीरता से सुनी जाएगी। जबकि वास्तविकता यह है कि उत्तेजना भरा क्रोध या हिंसा शक्ति का नहीं, अपितु मन की निर्बलता का प्रतीक है। क्रोध एक विकार है। यह प्रचंड ज्वाला के रूप में जलता हुआ विकराल तो लगता है, पर लाभदायक कदापि नहीं होता। 

    विध्वंसक तरीके से अधिकार मांगना और अधिकारों के लिए वास्तविक संघर्ष करना, दोनों में बड़ा अंतर है। मन में यह दृढ़ विश्वास रखना आवश्यक है कि जो आपके अधिकार हैं, प्रकृति या ईश्वरीय विधान अधिक दिनों तक आपको उनसे वंचित नहीं रख सकता । कोई भी उन्हें आपसे छीन नहीं सकता। अधिकार यदि न्यायोचित हैं तो देर से ही सही, परंतु वे आपको अवश्य प्राप्त होंगे। यदि आप अपनी बात सौम्यता से, स्थिर मन के साथ सकारात्मक तरंगों के जरिये रखें तो देखेंगे कि राह निकलनी आरंभ हो गई है। अस्थिर मन और क्रोध के वेग से कांपते मस्तिष्क से निकले उत्तेजना पैदा करने वाले स्पंदन सामने वाले को आपके विरुद्ध हो जाने के लिए उकसाते हैं। अधिकार देने से अधिक वह अधिकारों में कटौती की बात सोचने लगता है।

     ध्यान रहे कि अधिकार विलासिता के लिए नहीं हैं, न ही मात्र भोग के लिए। अधिकार पा लेने से कार्य समाप्त नहीं हो जाता, अपितु बढ़ जाता है। ये अपने संग कुछ अपरिहार्य कर्तव्य भी लाता है। मुख्यधारा में सम्मिलित होने के बाद अधिकारों का भोग तभी शोभा देता है, जब कर्तव्यों का पालन अपने उत्तरदायित्व को भली-भांति समझकर पूर्ण मनोयोग से किया जाए।

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