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मंगलवार, 1 नवंबर 2022

नियंत्रण

 नियंत्रण


प्रकृति के नियमानुसार पतझड़ में पत्ते पेड़ों से गिरते हैं। इस पर न तो पेड़ दुखी होते हैं और न ही पत्ते, क्योंकि वे प्रकृति के पावन एवं शाश्वत नियमों को भलीभांति समझते हैं। उन्हें पता है कि यही नियति का नियम है। इसके विपरीत मानव स्वयं को सर्वशक्तिमान समझकर परिवर्तन का प्रतिरोध करते हुए स्थितियों पर नियंत्रण का प्रयास करता है। यह समझते हुए कि इसमें उसका ही नुकसान है, फिर भी वह इस मूर्खता में लगा रहता है। इसके मूल में मनुष्य का स्वार्थ होता है। प्रत्येक प्राणी प्रकृति से स्वतंत्र है। यदि कोई हम पर जबरन नियंत्रण का प्रयास करता है तो हमें दमन की भावना महसूस होती है। हमारा आत्मा कराहने लगता है।


यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति लोगों को नियंत्रित करने का प्रयास करता है तो लक्षित लोग भी ऐसे व्यक्ति के प्रति सशंकित होने लगते हैं। दूसरों पर नियंत्रण के ऐसे प्रयास में असफलता व्यक्ति को जिद्दी और अड़ियल बना देती है। इससे निराशा और तनाव अंतस में घर करने लगता है। कुढ़न होने लगती है कि आखिर दुनिया मेरे हिसाब से क्यों नहीं चल रही ? जीवन के किसी न किसी मोड़ पर जाने-अनजाने में कोई हमें नियंत्रित करने का प्रयास करता है या फिर हम ही किसी को नियंत्रित करने की कोशिश में लगे रहते हैं। इसी उलझन में जीवन और उलझकर बोझिल होता जाता है। यदि नियंत्रण करना ही है तो अपनी उन बुरी आदतों पर करें, जो आपके बेहतर व्यक्ति बनने में अवरोध बनती हैं।


वस्तुतः,सहज एवं शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि स्थिति को नियंत्रित करने के बजाय उसे नियति के भरोसे छोड़कर सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान दें। यदि हम अपनी श्रेष्ठता और अहं भाव को किनारे रखकर समस्त प्राणी मात्र के प्रति निरपेक्ष भाव से सोचते हुए उन्हें नियंत्रित करने के मोह पर लगाम लगाएंगे तो उनके साथ-साथ अपना भी भला करेंगे।

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