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शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

इच्छा की तीव्रता

 इच्छा की तीव्रता



विवेकानंद जी ने कहा है कि चाह की अनुभूति ही सच्ची प्रार्थना है। प्रार्थना को शब्दों के सहारे की उतनी आवश्यकता नहीं होती । वस्तुतः, किसी इच्छा की पूर्ति के लिए हृदय में इच्छा की तीव्रता होना आवश्यक है। ऐसी इच्छा सदा एक प्रार्थना की भांति अवचेतन मन में चला करती है। यह अवचेतन मन आपके न जानते हुए भी उसी एक लक्ष्य के पीछे लग जाता है। आपके समक्ष स्वयं अपने लक्ष्य से संबंधित चीजें आने लगेंगी। आपको ऐसे लोग मिलने लग जाएंगे, जो आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचा दें। आप अखबारों में, पुस्तकों में उसी के संबंध में पढ़ने लग जाएंगे।


कहा जाता है कि जब आप पूरी दृढ़ता से कोई कामना करते हैं तो ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां आपकी सहायता करने लगती हैं। ईश्वर मनुष्य द्वारा आविष्कृत किसी भाषा में शब्द नहीं सुनता। वह भाव की भाषा समझता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे एक शिशु के टूटे-फूटे शब्दों से भी मां भाव समझ जाती है। आप जो करना चाहते हैं, जो बनना चाहते हैं, उसका बीजरूप में आज से ही स्वप्न संजोना पड़ेगा। सदैव उसी लक्ष्य के बारे में विचार करना होगा। जब वह स्वप्न आपके व्यक्तित्व की ऊर्जा में एक तरंग के रूप में समा जाता है, तब दैवीय शाक्तियां उसकी ओर आकर्षित होने लगती हैं। स्मरण रहे कि जिस किसी कार्य को आप आज साक्षात सफल देखते हैं, वह किसी दिन किसी के मस्तिष्क में मात्र विचार तरंग के रूप में ही था ।


आधे-अधूरे मन से किए गए कार्य फलित नहीं होते। और यदि होते भी हैं तो उनका परिणाम उतना सुखद नहीं होता। अधूरे मन से कार्य करना अपने प्रति किया जाने वाला सबसे बड़ा अन्याय है। आपकी ऊर्जा भी गई और कार्य भी मन का न हुआ। जब किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए. आवश्यक कर्म को पूर्ण मनोयोग के साथ संपन्न किया जाता है, तभी कर्ता और उसकी कृति या उपलब्धि कुंदन सी चमकती है। 

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