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मंगलवार, 8 नवंबर 2022

संतुष्टि का भाव

 संतुष्टि का भाव


कोई भी कार्यस्थल या पद आपकी आकांक्षाओं के अनुरूप निर्मित नहीं होता। यही मानवीय संबंधों के साथ भी है। पारिवारिक संबंधों में तो चयन का विकल्प ही नहीं होता। संतुष्टिपूर्ण, सार्थक जीवन के लिए स्वयं के व्यवहार, आचरण, सूझबूझ और विवेक से अनुकूल व्यवस्थाएं बनानी होती हैं। यही सफलता की परिभाषा भी है। जब तक जीवन है प्रतिकूल, कठिन तथा अप्रिय घटनाओं और व्यक्तियों से सामना होगा ही। जहां तक संभव हो सुलह कर लें या निपटें और जो असंभव है उसकी ' अनदेखी करना सीखें, किंतु असंतुष्टि का भाव नहीं संजोएं। परिस्थितियों या आसपास के व्यक्तियों में दोष ढूंढ़ कर उनके प्रति चिंता या वैमनस्य रखना दर्शाता है कि आपका मन स्वस्थ नहीं है। ऐसे सोच का व्यक्ति सुख-चैन से वंचित रहता है। असंतुष्ट रहना एक प्रवृत्ति है। जिसके अभाव को असंतोष का कारण ठहराया जाता है, वह सुलभ होने पर तुरंत दूसरा दुखड़ा प्रस्तुत हो जाएगा। संतुष्टि का अर्थ उत्कृष्टता के प्रयास न करना भी नहीं है।


जो संगठन हमें आजीविका देता है उसे असंतुष्ट व्यक्ति कहता है कि यहां के अधिकारियों एवं कर्मचारियों में मानवीयता, सद्भाव और सहयोग है ही नहीं, यह स्थान कार्य करने योग्य ही नहीं। ऐसी धारणा से ग्रस्त व्यक्ति मनोयोग से कार्य नहीं करता। फलस्वरूप उसका कार्य उच्च कोटि का नहीं होता। याद रखें कि समर्थ अंगों युक्त आपका यह मानव शरीर स्वयं एक बहुत बड़ा उपहार है। माता-पिता, भाई-बहन, अंतरंग मित्र, रहने के लिए मकान और दो वक्त का भोजन आदि के लिए स्वयं को धन्य समझें। उन्हें देखें जो आपसे कमतर परिस्थितियों में जीने को अभिशप्त हैं। जो आपके पास नहीं है उसे पाने के लिए प्रयत्न करें। जहां पहुंचना चाहते हैं उसके लिए ज्ञान, कौशल से स्वयं को परिमार्जित, परिष्कृत करें। विश्वास रखें, वह अवश्य मिलेगा जिस योग्य आप स्वयं को बनाने में सफल हो पाते हैं।

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