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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

वचनबद्धता

वचनबद्धता

जीवन में वचनबद्धता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसका अर्थ होता है,
मुख से निकाले गए वचन पर अटल रहना। मुख से निकली वाणी को पूर्ण
करने के लिए जी-जान से प्रयास करना और उसे पूर्ण करके ही दम लेना
चाहिए। कथनी और करनी में भिन्नता नहीं, समानता अनिवार्य है। आगे बढ़ने
के लिए एक व्यक्ति के लिए विचार का पक्का होना जरूरी है, कच्चा नहीं।
पक्के विचार की बदौलत ही का व्यक्तित्व निखरता है। उसके अस्तित्व की
गरिमा, मर्यादा में वृद्धि होती है। इससे प्रतिष्ठा, सम्मान, साख बढ़ती है। उज्जवल
भविष्य का पथ प्रशस्त होता है। कच्चे, अनगढ़ विचार के कारण व्यक्तित्व खोखला
हो जाता है। जीवन दिशाहीन,नीरज बन जाती है।
प्रायः देखने को मिलता है कि व्यक्ति कहते कुछ और करते कुछ और हैं। इससे
उनके अनगढ़ता का पता चलता है। ऐसे व्यक्ति और विश्वासी सिद्ध होते हैं। इनके
ऊपर कोई विश्वास नहीं करता है। कब किधर इनका मन, विचार फिसल जाए बता
पाना मुश्किल होता है। गिरगिट की तरह रंग बदलने का इनका स्वभाव होता है।
ऐसे व्यक्ति समाज की नजरों में धोखेबाज समझे जाते हैं। इससे व्यक्ति और समाज
की कोई आशा नहीं रहती है। उथले विचार, व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के कारण समाज,
संस्कृति का पतन होता है। ऐसे व्यक्तियों से देश को कोई उम्मीद नहीं रहती है। खोखले,
मर्यादाहीन, आदर्शहीन, मतिभ्रम जैसे व्यक्ति से देश समाज की उन्नति और गौरव वृद्धि
की आशा नहीं की जा सकती है। यह भविष्य के लिए संकट और चिंता की स्थिति उत्पन्न
करने का संकेत है। यह धर्म का लक्षण नहीं है।
कथनी -करनी में जब भी मिलता दिखाई दे तो वहां धर्म, सत्य का लोप हो जाता है।
धार्मिक व्यक्ति अपने वचन के सच्चे, पक्के होते हैं जो वे कहते हैं उस पर दृढ़ ,प्रतिज्ञाबद्ध,
संकल्पित रहते हैं। प्राण से भी ज्यादा मोल ऐसे व्यक्ति के वचन का होता है। इसी से उनकी
गरिमा में वृद्धि होती है।

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