मन से संवाद
कभी ऐसे क्षण भी
आते हैं जो मनुष्य अपने मन की बात करना चाहता है, किंतु किससे करें यह संकट खड़ा हो जाते है । मनुष्य अपनी भावनाएं मन में ही रखने को विवश हो जाता है और उसका दबाव सहन करता रहता
है। वास्तव में मनुष्य दूसरों के समक्ष अपनी छवि को लेकर सदैव चिंतित रहता है।
जिनके साथ सदैव घर, परिवार में रह रहा
है उनसे भी मन के तल पर दूर रहता है। दावे जितने भी कर लिए जाएं , किंतु संसार में कोई भी संबंध ऐसा नहीं है जिसे समरस कहा जा सके। एक मनुष्य का
मानी है जो उसके समस्त भावनाओं और विचारों के मौलिक रूप का साक्षी होता है, क्योंकि मन को शब्दों की आवश्यकता नहीं होती। कोई विचार कहां से उपजा है, किस उद्देश्य को लेकर चलने वाला है यह स्वयं का मन ही जानता है।
मन मनुष्य के
विचारों के मूल रूप का साक्षी होता है। वह उनका परीक्षण करने में भी समर्थ होता
है। मनुष्य का स्वयं के मन से विमर्श उसे सदैव सच का मार्ग दिखाने वाला होता है।
बौद्ध धर्म मन को परमात्मा का सूक्ष्म रूप मानते हैं। भारत के कई संतों ने मन में
परमात्मा को खोजने की बात कही है। विज्ञान ने भी मन की शक्ति को सभी शक्तियों से
ऊपर माना है और इससे संकल्प शक्ति का नाम दिया है। जो सभी सांसारिक शक्तियों से
श्रेष्ठ है वह परमात्मा ही है। मन की शक्ति को पहचानना ईश्वर को पहचानना है। मन से
वार्ता ईश्वर की कृपा प्राप्ति करने की प्रार्थना है ।
मन से संवाद करना
है तो उसे विकारों, मोह- माया के
अंधेरे से बाहर लाना होगा मन में प्रतिष्ठित ईश्वर के दर्शन के लिए मन का निर्मल
होना आवश्यक है मनुष्य अपने मन के निकट होता है तू सारी सृष्टि से निकटता बन जाती है। जो बात अपने मन से कर सकता
है वह किसी से भी कर सकता है। यदि उसे दुर्भावना भली नहीं लगतीतो वह
किसी के लिए भी दुर्भावना नहीं रखेगा। जो स्वयं को स्वीकार्य है वहीं अन्य के लिए
हो तभी संतुलन बनता है।
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