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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

संवाद की महत्ता

संवाद की महत्ता

सामाजिक होने के क्रम में मनुष्य द्वारा संवाद स्थापित करने की भूमिका महत्वपूर्ण होती है ।
संवाद के माध्यम से दो व्यक्तियों में विचारों का आदान-प्रदान होता है। मनुष्य के विचारों में
असहमति सामान्य है ओ मां किंतु स्वस्थ विचार इक संप्रेषण में असहमति के प्रति पूरी
सहमति होनी चाहिए। इस बात को हम बेहतर समझते हैं कि प्रत्येक मनुष्य का वैचारिक
स्तर और सोचने की दृष्टि भिन्न होती है। इन्हीं आधारों पर वह किसी तत्व के प्रति समर्थन
अथवा विरोध करता है। संभव है कि उसके विचारों से सहमत न हुआ जाए, किंतु उसके
विचार प्रकट करने के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए। वाल्टेयर ने भी कहा था
कि 'हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत ना हो पाऊं, फिर भी विचार प्रकट करने के
आप के अधिकारों की रक्षा करूंगा।'
सहमति और असहमति किसी भी स्वस्थ संवाद की अनिवार्य आवश्यकता है। सहमति
जितनी आवश्यक है उतनी असहमति भी जरूरी है। इसमें समस्या तब पैदा होती है जब
वैचारिक मतभिन्नता  के चलते मतभेद, मनभेद का रूप धारण कर लेते हैं। इस स्थिति में
मनुष्य संवाद स्थापित करने से कतरा ने लगता है वह भी सिर्फ इस आधार पर की विचार
भिन्न है। संवाद हीनता से दोनों को क्षति होती है। आज के दौर में मनुष्य अपनी प्रशंसा का
इतना आदी हो चुका है कि वह अपने विचारों के प्रति असहमति को स्वीकार नहीं कर
सकता। ऐसी सोच वाले मनुष्य के सम्मुख अन्य व्यक्ति अपने विचारों का खुलकर प्रदर्शन
करने से संकोच करने लगते हैं। यह अवस्था उससे संवाद रिश्ता की स्थिति में ला खड़ा करती है।
घर परिवार, दोस्तों में हमें अक्सर यह सुनने को मिलता है कि वह मुझ से बात नहीं करता तो मैं
उससे बात क्यों करूं! जब यह सोच मनुष्य के मस्तिक में अपना घर बना लेती है तो इससे दो
लोगों के बीच की दूरियां बढ़ जाती हैं। ऐसे में यदि हम स्वयं उस व्यक्ति विशेष के साथ चर्चा की
पहल करें तो बात बन सकती है। एक पहल द्वारा दूरियों को निकटता में बदला जा सकता है।
संवाद तमाम गलतफहमियां दूर करता है। संवाद की आवश्यकता सिर्फ व्यक्ति या परिवार में
ही नहीं, बल्कि संस्था और समुदाय में भी होती है। जरूरी है कि संवाद सदैव द्विपक्षीय हो ताकि
विचारों का आदान-प्रदान चलता रहे।

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