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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

आशा का अंकुर

आशा का अंकुर


एक छोटा लड़का हर रोज शाम को अपने पिता के साथ अपने घर
के पास के पार्क में आया करता था। हंस के दाएं पैर का एक अंगूठा
अंदर की तरफ मुड़ा हुआ था और इसकी वजह से वह सीधा नहीं चल
पाता था।पिता उसे हर रोज इस उम्मीद के साथ पार्क में लाते थे कि
कहीं वह दूसरे लोगों को दौड़ते देखकर खुद दौड़ने का प्रयास करेगा
और वह भी एक दिन सामान्य रूप से चलना शुरू कर देगा कमा लेकिन
वह बालक केवल अपने पिता के साथ बैठकर पार्क में स्थापित उस मूर्ति
को गौर से देखता रहता था जो एक धाविका की थी जो दौड़ने के लिए तैयारी
की मुद्रा में सामने नजर गड़ाए बैठी हुई थी। पुत्र को इस प्रकार उस धाविका
की मूर्ति को देखने पर पिता की उत्सुकता बलवती होती,'बेटे, तुम उस प्रतिमा
में हर दिन इतने ध्यान से क्या देखते हो? आखिर उसमें विशेष क्या है? '
'पापा, मैं उस प्रतिमा को देखकर जीवन में उठ खड़ा होने और तेजी से दौड़ने
के लिए अंदर से प्रेरित होता हूं। उस प्रतिमा में मुझे खुद का अक्स दिखाई देता
है और यही कारण है कि मैं जब भी उस प्रतिमा को देखता हूं तो अंदर से सिहर
जाता हूं और पता नहीं मुझे यह क्यों प्रतीत होता है कि उस प्रतिमा की जगह मैं
खुद वहां बैठा हूं।' समय गुजरता गया और 1 दिन बाद चमत्कारी हुआ जब वह
बालक सामान्य रूप से चलने और दौड़ने लगा। यह देखकर पिता अभिभूत होते
और उनकी आंखों से आंसू बह निकले।
सच पूछिए तो हम सबके अंदर एक वैसा ही बालक बैठा हुआ है जो किसी न
किसी मानसिक बाधा का शिकार है। अपने जीवन के अवरोध को पहचानने की
और पूर्ण आशा विश्वास के साथ उसको दूर करने की। जीवन उम्मीदों के भरोसे
चलता है। आशा के बिना जिंदगी अर्थहीन है। के अंत में रोशनी की दुनिया का
उदय होता है, यही अगाध विश्वास अंधेरों और मुसीबतों से लड़ने के लिए शक्ति
देता है। वस्तुतः मानव की निराशा और आशा का मूल कारण मानव का मन है।
मन की लगाम को सख्ती से नियंत्रित करने और जीवन के झंझावातों और संघर्षों
का साहस पूर्ण सामना करने में ही आशा का अंकुर छुपा होता है जो इंद्रधनुषी
सपनों को मूर्त रूप प्रदान करता है और सार्थक जीवन का निर्माण करता है।

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