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शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

मोक्ष के मार्ग

शास्त्रों में जीवन के चार उद्देश्य- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष बताए गए हैं।

सांसारिक बंधनों से मुक्ति ही मोक्ष का द्वार खोलती है। न्याय दर्शन के अनुसार दुख का आत्यंतिक मुक्ति या मोक्ष है। उसी प्रकार बौद्ध, जैन और मीमांसकों में भी मोक्ष की चर्चा है। बौद्ध दर्शन के अनुसार आत्मा के निवर्तन तथा निर्मल ज्ञान की उत्पत्ति ही मोक्ष है। जैन दर्शन के अनुसार कर्म से उत्पन्न आवरण के नाश से जीव का ऊपर उठना ही मोक्ष है। वहीं मीमांसकों के अनुसार वैदिक कर्म द्वारा स्वर्ग की प्राप्ति ही मोक्ष है। भगवान बुद्ध ने निर्वाण (मोक्ष) प्राप्ति के लिए जीवनपर्यंत साधना की। भगवान महावीर को भी कैवल्य (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करनी पड़ी। मोक्ष प्राप्ति के कई साधन हैं। इनमें वाणी, संयम, ब्रह्मचर्य, शास्त्र श्रवण, तप, अध्ययन, एकांतवाद, जप और समाधि मुख्य हैं। भारतीय दर्शन केवल मोक्ष की सैद्धांतिक चर्चा ही नहीं, बल्कि उसके व्यवहारिक उपाय भी बताता है। सभी भारतीय दर्शन बंधन और मोक्ष संबंधी विचार से सहमत हैं। यदि कोई अपवाद है तो वह है- चार्वाक दर्शन जो घोर नास्तिक और भौतिकवादी दर्शन है।
इसी प्रकार कुछ लोग समझते हैं मोक्ष मरने के बाद, शरीर रूपी बंधन के छूटने के बाद ही मिलता है, परंतु यह पूर्णत: सत्य नहीं है। हमें स्मरण रखना चाहिए कि मोक्ष देने वाले ज्ञान का स्वरूप भारतीय दर्शन की विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकता है, किंतु लक्ष्य सदी का एक है और वह है जीव को बंधनों से मुक्त करना।
इस लक्ष्य को अनेक साधनों से निरंतर अभ्यास के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। कर्म करते हुए व्यक्ति को अनेक बंधनों को काटना पड़ता है जिनमें लोभ,मोह व अहम तीनों प्रमुख हैं। वास्तव में इन तीन दुष्टप्रवृत्तियों से मनुष्य जीवन में छुटकारा पा लेना ही मोक्ष है जिसके लिए कर्ममार्ग और ज्ञानमार्ग का रास्ता अनेक दार्शनिक प्रणालियों से अपनाया है। इन तीनों दुष्टप्रवृत्तियों से छुटकारा मनुष्य के जीवन को सार्थक सिद्ध करने में सहायता करता है।

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